Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक - २०]
[ २३१
तक सब कहना चाहिए। भवादेश से—जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है, तथा कालादेश से— जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्व कोटिवर्ष, यावत् इतने काल गमनागमन करता है । [ चतुर्थ गमक ]
२४. सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अट्ठ अंतोमुहुत्ता, एवतियं । [ पंचमो गमओ ] ।
[२४] यदि वह (असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च ) जघन्य काल की स्थिति वाले संज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट आठ अन्तर्मुहूर्त, यावत् इतने काल गमनागमन करता है । [ पंचम गमक ]
२५. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं पुव्वकोडीआउएसु, उक्कोसेण वि पुव्वकोडीआउएसु, उवव० । एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जाणेज्जा । [ छट्ठो गमओ ]
[२५] यदि वह (असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च ) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हो तो वह जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय - तिर्यञ्च में उत्पन्न होता है । यहाँ यही पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष यह है कि यहाँ कालादेश ( भिन्न) समझना चाहिए। [ छठा गमक]
२६. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जाओ, संच्चेव पढमगमगवत्तव्वया, नवरं ठिति से जहन्नेणं, पुव्वकोडी, उक्कोसेणं वि पुव्वकोडी । सेसं तं चेव । कालएसेणं जहन्नेणं पुव्वंकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहिया, उक्कोसेणं पलिआवमस्स असंखेज्जतिभागं पुव्वकोडीपुहत्तमब्भहियं, एवतियं० । [ सत्तमो गमओ ]
[ २६ ] यदि वह (असंज्ञी पंचेन्द्रिय - तिर्यञ्च) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो प्रथम गमक के अनुसार उसकी वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की होती हैं। शेष पूर्ववत् जानना । काल की अपेक्षा से - जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटि- पृथक्त्व अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग, इतने काल तक गमनागमन करता है । [ सप्तम गमक ]
२७. सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया जहा सत्तमगमे, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिँ अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ; एवतियं ! [ अट्ठमो गमओ ] ।
[२७] यदि वह (उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च ) जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न हो, तो भी यही सातवें गमक की वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि कालादेश से—जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि, यावत् इतने काल गमनागमन करता है। [ आठवाँ गमक ]
२८. सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववन्नो, जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण