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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-१]
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[१४ प्र.] भगवन् ! वे जीव साकारोपयोग वाले हैं या अनाकारोपयोग-युक्त हैं? [१४ उ.] गौतम! वे साकारोपयोग-युक्त भी होते हैं और अनाकारोपयोग-युक्त भी होते हैं। १५. तेसि णं भंते! जीवाणं कति सन्नाओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! चत्तारि सन्नाओ पन्नत्ताओ, तं जहा-आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा।
[१५ प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितनी संज्ञाएं कही गई हैं? [१५ उ.] गौतम! उनके चार संज्ञाएं कही गई हैं, यथा—आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा । १६. तेसि ण भंते! जीवाणं कति कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाये माणकसाये मायाकसाये लोभकसाये। [१६ प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितने कषाय होते हैं ? [१६ उ.] गौतम! उनके चार कषाय होते हैं, यथा—क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय। १७. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंच इंदिया पत्नत्ता, तं जहा–सोतिदिए चक्खिदिए जाव फासिंदिए। [१७ प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई है? [१७ उ.] गौतम! उनके पांच इंद्रियाँ कही हैं, यथा— श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, यावत् स्पर्शेन्द्रिय । १८. तेसि णं भंते! जीवाणं कति समुग्घाया पन्नत्ता? गोयमा! तओ समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा—वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए। [१८ प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितने समुद्घात कहे हैं?
[१८ उ.] गौतम! उनके तीन समुद्घात कहे हैं, यथा-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात।
१९. ते णं भंते जीवा किं सायावेदगा, असायावेदगा? गोयमा! सायावेदगा वि, असातावेदगा वि। [१९ प्र.] भगवन् ! वे जीव साता-वेदक हैं या असाता-वेदक हैं ? [१९ उ.] गौतम! वे सातावेदक भी हैं और असातावेदक भी हैं। २०. ते णं भंते! जीवा किं इत्थिवेदगा, पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा?