Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक - ३]
८. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, तस्स वि एस चेव वत्तव्वया, नवरं ठिती जहन्त्रेणं देसूणाई दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं । सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति । कालादेसेणं जहन्त्रेणं देसूणाई चत्तारि पलिओवमाई, उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिओवमाइं, एवतियं कालं० । [ तइओ गमओ ] |
[८] यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हो, तो उसके लिए भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य देशोन दो पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती हैं। भवादेश तक शेष सब कथन पूर्ववत् । काल की अपेक्षा से— जघन्य देशोन चार पल्योपम और उत्कृष्ट देशोन पांच पल्योपम, इतने काल तक गमनागमन करता है। [ सू. ८, तृतीय गमक]
९. सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स जहन्नकालद्वितीयस्स तहेव निरवसेसं । [ ४-६ गमगा
[९] यदि वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हुआ हो तो उसके भी तीनों गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले जघन्य काल की स्थिति के असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी तिर्यञ्च के तीनों गमकों के समान समग्र कथन जानना चाहिए । [ सू. ९, ४-५ - ६ गमक ]
१०. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीयो जाओ, तस्स वि तहेव तिन्नि गमका जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स, नवरं नागकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स । [ ८-९ गमंगा ]
[१०] यदि वह स्वयं उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हुआ हो, तो उसके भी तीनों गमक असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्चयोनिक के तीनों गमकों के समान कहने चाहिए । विशेष यह है कि यहाँ नागकुमार की स्थिति और संवेध जानना चाहिए। शेष सब वर्णन असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्चयोनिक के समान जानना चाहिए। [ सू. १०, ७-८ - ९ गमक ]
विवेचन—नागकुमारों की उत्पत्तिविषयक स्पष्टीकरण – (१) 'उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है'; यह कथन उत्तरदिशा के नागकुमारनिकाय की अपेक्षा से समझना चाहिए; क्योंकि उन्हीं में देशोन दो पल्योपम की उत्कृष्ट आयु होती है। (२) उत्कृष्ट संवेधपद में जो देशोन पांच पल्योपम कहे गए हैं, वे असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्च सम्बन्धी तीन पल्योपम और नागकुमार सम्बन्धी देशोन दो पल्योपम, इस प्रकार देशोन पांच पल्योपम समझना चाहिए। (३) दूसरे गमक में नागकुमारों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की बताई है। संवेधकाल की अपेक्षा से— जघन्य सातिरेक पूर्वकोटि सहित दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तीन पल्योपम सहित दस हजार वर्ष समझना चाहिए। (४) तीसरे गमक में देशोन दो पल्योपम की स्थिति वालों में उत्पत्ति समझनी चाहिए। जघन्य देशोन दो पल्योपम की जो स्थिति कही है, वह अवसर्पिणकाल के सुषमा नामक दूसरे आरे का कुछ भाग बीत जाने पर असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्चों की अपेक्षा से समझनी चाहिए; क्योंकि उन्हीं में इतना आयुष्य हो सकता है और वे ही अपनी उत्कृष्ट आयु के समान देवायु का बन्ध करके उत्कृष्ट स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं । (५) तीन पल्योपम की जो स्थिति कही गई है, वह देवकुरु आदि के असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यञ्चों की अपेक्षा से समझनी