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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
है । मध्य के तीन गमकों का कथन संज्ञी-पंचेन्द्रिय के मध्य के तीनों गमकों के समान है। प्रथम के तीन औंघिक गमकों में जो अवगाहना और स्थिति कही गई है, वह अन्तिम तीन गमकों में नहीं होती, किन्तु इनमें अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की और स्थिति तथा अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि के हैं। देवों से आकर पृथ्वीकायिकों में उत्पाद-निरूपण
४०. जति देवेहिंतो उववज्जंति किं भवणवासिदेवेहिंतो उववज्जंति, वाणमंतर०, जोतिसियदेवेहिंतो उवव०, वेमाणियदेवेहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! भवणवासिदेवेहिंतो वि उववज्जंति जाव वेमाणियदेवेहिंतो वि उववज्जंति ।
[४० प्र.] भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, क्या भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[४० उ.] गौतम ! वे भवनवासी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, यावत् वैमानिक देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं।
विवेचन — निष्कर्ष — पृथ्वीकायिक जीवों में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, चारों निकायों के देव उत्पन्न हो सकते हैं ।
भवनवासी देवों की अपेक्षा पृथ्वीकायिकों में उत्पत्ति - निरूपण
४१. जइ भवणवासिदेवेहिंतो उववज्जंति किं असुरकुमारभवणवासिदेवेहिंतो उववज्जंति जाव थणियकुमारभवणवासिदेवेर्हितो ० ?
गोयमा ! असुरकुमारभवणवासिदेवेहिंतो वि उववज्जंति जाव थणियकुमारभवणवासिदेवेहिंतो वि उववज्जति ।
[४१ प्र.] भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव) भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे असुरकुमार-भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् स्तनितकुमार - भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[४१ उ.] गौतम ! वे असुरकुमार - भवनवासी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, यावत् स्तनितकुमारभवनवासी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं।
विवेचन — निष्कर्ष — पृथ्वीकायिक जीव दसों प्रकार के भवनपति देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। दस प्रकार के भवनपति देवों के नाम इस प्रकार हैं- ( १ ) असुरकुमार, (२) नागकुमार, (३) सुपर्णकुमार, (४)
१. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं, भाग २ (मूलपाठ - टिप्पणयुक्त) पृ. ९३८-९३९ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८३२