Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[१४प्र.] भगवन् ! जो अप्कायिक जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है ?
[१४ उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होता है । इस प्रकार पृथ्वीकायिक के समान अप्कायिक के भी नो गमक जानना चाहिए। विशेष यह है कि अप्कायिक का संस्थान स्तिबुक ( - बुलबुले ) के आकार का होता है। स्थिति और अनुबन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष है । इसी प्रकार तीनों गमकों में जानना चाहिए। तीसरे, छठे, सातवें, आठवें और नौवें गमकों में संवेध—भव की अपेक्षा से— जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण होते हैं। शेष चार गमकों में जघन्य दो भव और उत्कृष्ट असंख्यात भव होते हैं। तीसरे गमक में काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष; यावत् इतने काल गमनागमन करता है। छठे गमक में काल की अपेक्षा से - जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ८८ हजार वर्ष, यावत् इतने काल गमनागमन करता है। सातवें गमक में काल की अपेक्षा से— जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष तक गमनागमन करता है। आठवें गमक में काल की अपेक्षा से - जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सात हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक २८ हजार वर्ष तक गमनागमन करता है। नौवें गमक में भवादेश सेजघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से और उत्कृष्ट एक लाख सोलह हजार वर्ष; इतने काल तक गमनागमन करता है। कायिक की स्थिति जाननी चाहिए ।
जघन्य उनतीस हजार वर्ष इस प्रकार नौ ही गमकों में [ गमक १ से ९ तक ]
विवेचन - अप्काय के भेद-सूक्ष्म और बादर अप्काय में से प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चार प्रकार होते हैं ।
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भवादेश से संवेध का कथन—भव की अपेक्षा से सभी गमकों में जघन्यतः दो भवग्रहण प्रसिद्ध हैं, किन्तु उत्कृष्ट में विशेषता है । यथा— तीसरे, छठे, सातवें, आठवें और नौवें गमक में उत्कृष्टतः संवेध आठ भव ग्रहण करते हैं। शेष पहले, दूसरे, चौथे और पांचवे गमक में उत्कृष्ट असंख्यात भव होते हैं; क्योंकि इन चार गमकों में किसी भी पक्ष में उत्कृष्ट स्थिति नहीं है ।
कालादेश से कथन —— काल की अपेक्षा से — तीसरे गमक में जघन्य २२,००० वर्ष कहे गए हैं, क्योंकि उत्कृष्ट स्थिति इतनी ही है और अन्तर्मुहूर्त जो अधिक कहा गया है, वह वहाँ पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले अप्कायिक की जघन्यकाल - स्थिति की विवक्षा से कहा गया है। इसी गमक में कालापेक्षया उत्कृष्ट १,१६,००० वर्ष कहे गये हैं । यहाँ उत्कृष्ट स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों के चार भवों के ८८,००० वर्ष होते हैं, इसी प्रकार औधिक में उत्कृष्ट स्थिति वाले अप्कायिक जीवों के चार भवों के २८,००० वर्ष होते हैं; इन दोनों को मिलाने से कुल एक लाख सोलह हजार वर्ष होते हैं।
छठे गमक में जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पत्ति बतलाई गई है। इसलिए दोनों के चार भवों के चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ८८,००० वर्ष होते हैं। सातवें और आठवें गमक का संवेध भी इसी प्रकार जानना
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भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८२५