Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-१२]
[१८५ [७] यदि वह (पृथ्वीकायिक) स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो तो उसके सम्बन्ध में पूर्वोक्त प्रथम गमक के समान कहना चाहिए। किन्तु विशेष यह है कि उसमें लेश्याएँ तीन होती हैं। उसकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की होती है। उसका अध्यवसाय अप्रशस्त और अनुबन्ध स्थिति के समान होता है। शेष सब पूर्ववत् कहना चाहिए। [सू. ७, चतुर्थ गमक]
८. सो चेव जहनकालट्टितीएसु उववन्नो, स च्चेव चउत्थगमकवत्तव्वता भाणियव्वा।[पंचमो गमओ] ।
[८] यदि वह (जघन्य स्थितिवाला पृथ्वीकायिक) जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो उसके सम्बन्ध में पूर्वोक्त चतुर्थ गमक के अनुसार वक्तव्यता कहनी चाहिए। [सू. ८, पंचम गमक]
९. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वता, नवरं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिनि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा जाव भवाएसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं। कालएसेणं जहन्त्रेण बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साई चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवतियं०। [छट्ठो गमओ]।
[९] यदि वह (जघन्य स्थिति वाला पृथ्वीकायिक) उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो, तो यही वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि वह जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं। यावत् भवादेश से-जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है। काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ८८ हजार वर्ष, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। [सू. ९, छठा गमक]
१०. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जातो, एवं तइयगमगसरिसो निरवसेसो भाणियव्वो, नवरं अप्पणा से ठिती जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साइं, उक्कोसेण वि बावीस वाससहस्साइं। [ सत्तमो गमओ]
[१०] यदि वह (पृथ्वीकायिक) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में तृतीय गमक के समान समग्र गमक कहना चाहिए। विशेष यह है कि उसकी स्वयं की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की होती है। [सू. १०, सप्तम गमक],
११. सो चेव अप्पणा जहन्नकालद्वितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। एवं जहा सत्तमगमगो जाव भावदेसो। कालाएसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साई अंतोमुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साई चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवतियं० [अट्ठमो गमओ] ।
[११] यदि वह (उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पृथ्वीकायिक) स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। इस प्रकार यहाँ सातवें गमक की वक्तव्यता यावत् भवादेश तक कहनी चाहिए। काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ८८ हजार वर्ष, यावत् इतने काल