Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१८२ ]
बारसमो : पुढविकाइय उद्देसओ
बारहवाँ उद्देशक : पृथ्वीकायिक ( उपपातादिप्ररूपणा )
गति की अपेक्षा से पृथ्वीकायिकों की उत्पत्तिप्ररूपणा
१. [ १ ] पुढविकाइया णं भंते ! कओहिंओ उववज्जंति ? किं नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खमणुस्स- देवेहिंतो उववज्जंति ?
गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्ख - मणुस्स - देवेहिंतो उववज्र्ज्जति ।
[१-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यञ्चों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं ?
[१-१ उ.] गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं, किन्तु तिर्यञ्चों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं
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[२] जदि तिरक्खिजोणि० किं एर्गिदियतिरिक्खजोणि० ?
एवं जहा वक्कंतीए उववातो जाव
[१-२ प्र.] यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव) तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तियञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[१-२ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के (छठे ) व्युत्क्रान्ति पद में कहा गया है, तदनुसार यहाँ भी उपपात कहना चाहिए। यावत्
[३] जदि बादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं पज्जत्ताबायर० जाव उववज्जंति, अपज्जत्ताबायरपुढवि० ?
गोयमा ! पज्जत्ताबायरपुढवि०, अपज्जताबायरपुढवि जाव उववज्जंति ।
[१-३ प्र.] भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव) बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक से उत्पन्न होते
हैं ।
[१-३ उ.] गौतम ! वे पर्याप्त और अपर्याप्त दोनों के बादर पृथ्वीकायिक जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं, (यहाँ तक कहना चाहिए)
विवेचन — दो निष्कर्ष - (१) पृथ्वीकायिक जीव नारकों से नहीं आते, तिर्यञ्चों, मनुष्यों या देवों से आकर उत्पन्न होते हैं । (२) तियञ्चयोनिकों में भी वे पर्याप्त और अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक जीवों में आकर उत्पन्न होते हैं।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २, (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. ९३०