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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [४ प्र.] भगवन् ! यदि वे (नागकुमार) संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं, या असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं ?
[४ उ.] गौतम ! वे संख्येय वर्षायुष्क एवं असंख्येय वर्षायुष्क (दोनों प्रकार के) संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं।
विवेचननिष्कर्ष–नागकुमार, असुरकुमार की तरह संख्यातवर्ष की और असंख्यातवर्ष की आयु वाले दोनों प्रकार के संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं। नागकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक में उपपात-परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
५.असंखिजवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवतिकालट्ठिती०?
गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं देसूणपलिओवमट्टितीएसु उववज्जेजा।
[५ प्र.] भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव, जो नागकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है ?
[५ उ.] गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है।
६. ते णं भंते ! जीवा० ?
अवसेसो सो चेव असुरकुमारेसु उववजमाणस्स गमगो भाणियव्यो जाव भवाएसो त्ति; कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिओवमाई, एवतियं० जाव करेजा। [ पढमो गमओ] ।
[६ प्र.] भगवन् ! वे जीव (नागकुमार) एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
[६ उ.] (गौतम ! ) असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के समान यहाँ भी भवादेश तक गमक कहना चाहिए। काल की अपेक्षा से—जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटिवर्ष और उत्कृष्ट देशोन पांच पल्योपम; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। [सू. ५-६ प्रथम गमक]
७. सो चेव जहन्नकालद्वितीएसु उववन्नो, एसा चेव वत्तव्वया, नवरं नागकुमारट्ठिति संवेहं च जाणेजा। [बीओ गमओ]।
[७] यदि वह जघन्यकाल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हो, तो उसके लिये भी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ नागकुमारों की स्थिति और संवेध जानना चाहिए। [-सू. ७ द्वितीय गमक]