Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-२]
[१७१ [१८ उ.] (गौतम ! ) इनके सम्बन्ध में रत्नप्रभापृथ्वी के विषय में वर्णित नौ गमकों के सदृश यहाँ भी नौ गमक जानने चाहिए। विशेष यह है कि जब वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला होता है, तब तीनों ही गमकों (४-५-६) में यह अन्तर जानना चाहिए—इनमें चार लेश्याएँ होती हैं। इनके अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं शेष सब कथन पूर्ववत् । संवेध सातिरेक सागरोपम से कहना चाहिए। [सू. १७-१८, एक से नौ गमक तक]
विवेचन—निष्कर्ष-(१) असुरकुमारों में पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव उत्पन्न होते हैं । (२) विशेषतया वे जघन्य १० हजार वर्ष की और उत्कृष्ट सातिरेक एक सागरोपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होते हैं। (३) इसके नौ गमक रत्नप्रभा के गमकसदृश होते हैं । (४) कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं-जघन्यकालिक स्थिति वाले तीनों (४-५-६) गमकों में लेश्याएँ चार, अध्यवसाय प्रशस्त और संवेध सातिरेक सागरोपम से।'
उत्कृष्ट सातिरेक सागरोपम स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पत्ति का कथन बलीन्द्रनिकाय की अपेक्षा से समझना चाहिए।
'अन्य विशेषताओं का स्पष्टीकरण-(१) जघन्यकाल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य तिर्यञ्चों के चौथे, पाँचवें और छठे गमक में तीन लेश्याएँ—(कृष्ण, नील, कापोत) कही गई हैं, किन्तु यहाँ इन्हीं तीन गमकों में चार लेश्याएँ कही गई हैं. इसका कारण यह है कि असरकमारों में तेजोलेश्या वाले जीव भी उत्पन्न होते हैं। (२) रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने वाले जघन्य स्थिति के तिर्यञ्चों के अध्यवसायस्थान अप्रशस्त कहे गए हैं, किन्तु यहाँ असुरकुमारों में प्रशस्त बताए हैं, दीर्घकालिक स्थिति वालों में तो प्रशस्त और अप्रशस्त दोनों अध्यवसायस्थान होते हैं, किन्तु जघन्य स्थिति वालों में अप्रशस्त नहीं होते, क्योंकि काल अल्प होता है। (३) रत्नप्रभापृथ्वी के गमकों में संवेध एक सागरोपम से बताया गया है, जबकि यहाँ असुरकुमार-गमकों में सातिरेक (कुछ अधिक) एक सागरोपम बतलाया गया है। यह भी बलीन्द्रनिकाय की अपेक्षा से समझना चाहिए। संख्येयवर्षायुष्क-असंख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों की असुरकुमारों में उत्पत्ति का निरूपण
१९. जदि मणुस्सेहिंतो उववजंति किं सन्निमणुस्सेहितो, असन्निमणुस्सेहितो ? गोयमा ! सन्निमणुस्सेहितो, नो असन्निमणुस्सेहिंतो उववजंति।
[१९ प्र.] भगवन् ! यदि वे (असुरकुमार) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, या असंज्ञी मनुष्यों से?
[१९ उ.] गौतम ! वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी मनुष्यों से नहीं। १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भाग २ (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. ९२५ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८२० ३. वही, पत्र ८२१