Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवां शतक : उद्देशक-१]
[१४१ संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आते हैं, वे संख्यातवर्ष की आयु वाले, पर्याप्तक, जलचर, स्थलचर, खेचर तीनों से आकर उत्पन्न होते हैं।' रत्नप्रभानरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त-संख्यातवर्षायुष्क-संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्च के उपपात-परिमाणादि वीस द्वार-प्ररूपणा
५४. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? ।
गोयमा! जहनेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमट्टितीएसु उववजेजा।
[५४ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है?
[५४ उ.] गौतम! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिक में उत्पन्न होता है।
५५. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववजंति? जहेव असन्त्री। [५५ प्र.] भगवन् ! वे जीव (संज्ञी-तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय), एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? [५५ उ.] गौतम! (पूर्ववत्) असंज्ञी के समान समझना। ५६. तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा किंसंघयणी पन्नत्ता?
गोयमा! छव्विहसंघयणी पन्नत्ता, तं जहा—वइरोसभनारायसंघयणी उसभनारायसंघयणी जाव सेवट्टसंघयणी।
[५६ प्र.] भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस संहनन वाले होते हैं?
[५६ उ.] गौतम! उनके शरीर छहों प्रकार के संहनन वाले हैं, यथा-वे वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले, ऋषभनाराचसंहनन वाले यावत् सेवार्तसंहनन वाले होते हैं।
५७. सरीरोगाहणा जहेव असन्त्रीणं। [५७] (उनके) शरीर की अवगाहना, असंज्ञी के समान जानना। ५८. तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहसंठिया पन्नत्ता, तं जहा—समचतुरंस० नग्गोह० जाव हुंडा०।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. २, पृ. ९११ २. अधिकपाठ—'जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं।'
(अर्थात्-जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन)।