________________
चौवीसवां शतक : उद्देशक-१]
[१४३ ६२. ते णं भंते! जीवा०?
एवं सो चेव पढमगमओ निरवसेसो नेयव्वो जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवतियं कालं सेवेज्जा। [सु०६१-६२ बीओ गमओ]।
[६२ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
[६२ उ.] गौतम! पूर्ववत् प्रथम गमक (सू. ५४ से ६० तक) पूरा, यावत् काल की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि काल तक सेवन (व्यतीत) करता है और इतने ही काल तक गमनागमन करता है। [सू.६१-६२ द्वितीय गमक]
६३. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं सागरोवमद्वितीएसु, उक्कोसेणं वि सागरोवमट्टितीएसु उववज्जेज्जा। अवसेसो परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो सो चेव पढमगमो नेयव्वो जाव कालाएसेणं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं; एवतियं कालं सेविज्जा०। [सु० ६३ तइओ गमओ]। __. [६३] यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न हो तो जघन्य एक सागरोपम की स्थिति वाले और उत्कृष्ट भी एक सागरोपम की स्थिति वाले (नैरयिकों) में उत्पन्न होता है।
शेष परिमाणादि से लेकर भवादेश-पर्यन्त कथन उसी पूर्वोक्त प्रथम गमक के समान, यावत् काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम काल तक सेवन करता है तथा इतने ही काल तक गमनागमन करता है, ऐसा समझना चाहिए। [सू० ६३ तृतीय गमक]
६४. जहन्नकालद्वितीयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! ले भविए रयणप्पभपुढवि जाव उववज्जित्तए से णं भंते ! केवतिकालहितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमद्वितीएसु उववजेज्जा।
[६४ प्र.] भगवन् ! जघन्यकाल की स्थिति वाला, पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, जो रत्नप्रभापृथ्वी में नैरयिकरूप में उत्पन्न होने वाला हो, तो वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
[६४ उ.] गौतम! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है।
६५. ते णं भंते! जीवा०?
अवसेसो सो चेव गमओ। नवरं इमाइं अट्ठ णाणत्ताइं—सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं १ । लेस्साओ तिण्णि आदिल्लाओ २।नो सम्मट्टिी, मिच्छट्टिी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी ३। दो अनाणा णियमं ४। समुग्घाया आदिल्ला तिनि ५। आउं ६;
१. 'एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा।'