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बिइओ : असुरकुमारुद्देसओ
द्वितीय उद्देशक : असुरकुमारों का उपपात गति की अपेक्षा से असुरकुमारों के उपपात की प्ररूपणा
१. रायगिहे जाव एवं वयासि[१] राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा
२. असुरकुमारा णं भंते ! कओहिंतो उववजंति ? किं नेरइएहितो उववजंति, तिरिमणुदेवेहितो उववजंति ?
गोयमा ! णो णेरइएहितो उववजंति, तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, मणुस्सेहिंतो उववजंति, नो देवेहिंतो उववजंति।
[२ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार कहाँ से—किस गति से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या तिर्यञ्चों से, मनुष्यों से अथवा देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[२ उ.] गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते।
विवेचन—असुरकुमारों की उत्पत्ति–वे नारकों और देवों से उत्पन्न नहीं होते, किन्तु या तो वे तिर्यञ्चों से अथवा मनुष्यों से मरण करके उत्पन्न होते हैं। असुरकुमार में उत्पन्न होनेवाले पर्याप्त असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक की उपपातपरिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
३. एवं जहेव नेरइयउद्देसए जाव पजत्तअसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववजेज्जा?
गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीयेसु, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजतिभागकालद्वितीएसु उववजेजा।
[३ प्र.] जिस प्रकार नैरयिक उद्देशक में प्रश्न है, इसी प्रकार (यहाँ भी प्रश्न है—) भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जीव, जो असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ?
[३ उ.] गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है।