Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-१]
[१४५ ६९. ते णं भंते ! ०?
एवं सो चेव चउत्थो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो जाव कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवतियं जाव करेज्जा [सु०६८-६९ छट्ठो गमओ]।
[६९ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? इत्यादि प्रश्न।
[६९ उ.] यहाँ पूर्ववत् सम्पूर्ण चतुर्थ गमक, यावत्-काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार सागरोपम काल यावत् गमनागमन करता है, (यहाँ तक) कहना चाहिए। [६८-६९ छठा गमक]।
७०. उक्कोसकालद्वितीयपज्जत्तसंखेजवासा० जाव तिरिक्खजोणिए णं भंते! जाव जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं सागरोवमद्वितीएसु उववज्जेज्जा। __[७० प्र.] भगवन् ! उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त-संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता
[७० उ.] गौतम! वह जघन्यत: दस हजार वर्ष की और उत्कृष्टतः एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है।
७१. ते णं भंते! जीवा०?
अवसेसो परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो एतेसिं चेव पढमगमओणेयव्यो, नवरं ठिती जहन्नेणं पुवकोडी, उक्कोसेणं वि पुव्वकोडी। एवं अणुबंधो वि। सेसं तं चेव। कालादेसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चाहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं; एवतियं कालं जाव करेजा। [सु०७०-७१ सत्तमो गमओ]।
[७१ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? इत्यादि प्रश्न ।
[७१ उ.] गौतम ! परिमाण आदि से लेकर भवादेश तक की वक्तव्यता के लिए इनका (संज्ञीपंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का) प्रथम गमक जानना चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी जानना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् समझना तथा काल की अपेक्षा से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम—इतना काल यावत् गमनागमन करता है । [सू. ७०-७१ सप्तम गमक]
७२. सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेण वि दसवाससहस्सट्ठितीएसु। उववज्जेजा।
[७२] यदि वह (उत्कृष्ट० संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) जघन्यस्थिति वाले ( रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों) में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है।