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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
_ [९२ प्र.] भगवन् ! यदि वह नैरयिक मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह संज्ञी-मनुष्यों में से या असंज्ञी-मनुष्यों में से उत्पन्न होता है ?
[९२ उ.] गौतम ! वह संज्ञी-मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, असंज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है।
९३. जति सन्निमुणुस्सेहिंतो उववजंति किं संखेजवासाउयसनिमणुस्सेहिंतो उववजंति, असंखेजवा० जाव उववजंति ?
गोयमा ! संखेजवासाउयसन्निमणु०, नो असंखेजवासाउय जाव उववजंति।
[९३ प्र.] भगवन् ! यदि वह संज्ञी-मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों में से अथवा असंख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों में से उत्पन्न होता है ?
[९३ उ.] गौतम ! वह संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न होता है, असंख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है।
९४. जदि संखेजवासा० जाव उववजंति किं पजत्तसंखेज्जवासाउय०, अपजसंखेजवासाउय० ? गोयमा ! पज्जत्तसंखेजवासाउय० नो अपजत्तसंखेजवासाउय० जाव उववति।
[९४ प्र.] भगवन् ! यदि वह संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-मनुष्यों में से या अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-मनुष्यों में से उत्पन्न होता है ?
[९४ उ.] गौतम ! वह पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है।
९५. पजत्तसंखेजवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववजित्तए से णं भंते ! कतिसु पुढवीसु उववज्जेज्जा ?
गोयमा ! सत्तसु पुढवीसु उववज्जेजा, तं जहा—रयणप्पभाए जाव अहेसत्तमाए।
[९५ प्र.] भगवन् ! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त मनुष्य, जो नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितनी नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होता है ? _ [९५ उ.] गौतम ! वह सातों ही नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होता है, यथा—रत्नप्रभा में, यावत् अधःसप्तम नरकपृथ्वी में।
विवेचन—निष्कर्ष—संख्यात वर्ष की आयु वाला, पर्याप्त संज्ञी-मनुष्य सातों ही नरकपृथ्वियों में से किसी में भी उत्पन्न हो सकता है।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २. (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. ९१७-९१८