Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
चाहिए। विशेष यह है कि उनके शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट भी रनिपृथक्त्व होती है। उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व की होती है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी होता है। शेष सब कथन अघिक गमक के समान जानना। संवेध भी उपयोगपूर्वक समझ लेना चाहिए। [ सू. १०९ चार- पांच-छह गमक ]
११०. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु इमं णाणत्तं— सरीरोगाहणा जहन्नेणं पंच धणुसयाई, उक्कोसेण वि पंच धणुसयाई; ठिती जहन्त्रेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी; एवं अणुबंधो वि। सेसं जहा पढमगमए, नवरं नेरइयठितिं कायसंवेहं च जाजा [ सु० ११० सत्तम अट्ठम- नवमगमा ] ।
[११०] यदि वह मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो उसके तो उसके भी तीनों गमकों (शर्कराप्रभापृथ्वीनैरयिकों में, जघन्य स्थिति वाले श.प्र. नैरयिकों में और उत्कृष्ट स्थिति वाले श.प्र. नैरयिकों में उत्पन्न होने सम्बन्धी गमक) में विशेषता इस प्रकार है— उनके शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की होती है। उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटिवर्ष
होती है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी समझना । शेष सब प्रथम गमक के समान है। विशेषता यह है कि नैरयिक की स्थिति और कायसंवेध तदनुकूल जानना चाहिए। [सू. ११० सातवाँ - आठवाँ - नौवाँ गमक]
विवेचन—शर्कराप्रभापृथ्वी में उत्पत्ति आदि सम्बन्धी प्रश्नोत्तर — दो रत्नि (हाथ) से कम की अवगाहना वाले और दो वर्ष से कम आयुष्य वाले मनुष्य दूसरी शर्कराप्रभापृथ्वी में उत्पन्न नहीं होते हैं ।
प्रथम-द्वितीय-तृतीय गमक मे नानात्व कथन – (१) औधिक मनुष्य की औघिक नारकों में उत्पत्तिसम्बन्धी प्रथम गमक में स्थिति आदि का निर्देश मूल पाठ में कर दिया है। (२) औधिक मनुष्य की जन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पत्तिसम्बन्धी द्वितीय गमक में नैरयिक की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम होती है। काल की अपेक्षा से संवेध — जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम होता है। (३) औधिक मनुष्य की उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पत्ति तृतीय सम्बन्धी तृतीय गमक में भी इसी प्रकार जानना चाहिए, किन्तु इसका कालतः संवेध जघन्य तीन सागरोपम और उत्कृष्ट बारह सागरोपम होता है।
चार-पांच-छह गमक में विशेष कथन – ( ४ ) जघन्य स्थिति वाले मनुष्य की औधिक नरक में उत्पत्तिसम्बन्धी चतुर्थ गमक में काल की अपेक्षा संवेध वर्षपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार वर्षपृथक्त्व अधिक बारह सागरोपम होता है, (५) जघन्य स्थिति वाले मनुष्य की जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पत्ति सम्बन्धी पंचम गमक में कायसंवेध काल की अपेक्षा से जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार वर्षपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम होता है। इसी प्रकार (६) छठा गमक भी उपयोग - पूर्वक जानना चाहिए ।
सप्तम- अष्टम-नवम गमक में विशेष कथन – (७) उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य की औधिक नारकों में उत्पत्ति सम्बन्धी सप्तम गमक, (८) उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य की जघन्य स्थिति वाले नारकों में उत्पत्ति