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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
आयुष्य को मिला कर असंज्ञी - तिर्यंचपंचेन्द्रिय का उत्कृष्ट कायसंवेध पूर्वकोटिवर्ष अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण बताया गया है।
नरक में उत्पन्न होने वाले संख्यातवर्षायुष्क पर्याप्त संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों की उपपात
प्ररूपणा
५१. जदि सन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं संखेज्जवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्ख० जाव उववज्जंति ? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचेंदिय० जाव उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय० जाव उवज्जंति । [५१ प्र.] भगवन्! यदि नैरयिक संज्ञी - पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं?
[५१ उ.] गौतम! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। ५२. जदि संखेज्जवासाउयसन्निपंचेंदिय जाव उववज्जंति किं जलचरेहिंतो उववज्जंति ? ० पुच्छा। गोयमा! जलचरेहिंतो उववज्जंति जहा असन्नी जाव पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्तएहिंतो उववज्जति ।
[५२ प्र.] भगवन्! यदि नैरयिक संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी - तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं, स्थलचरों में से अथवा खेचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं? [५२ उ.] गौतम! वे जलचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि सब असंज्ञी के समान, यावत् पर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों में से नहीं; (यहाँ तक कहना चाहिए) ।
५३.
पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए नेरइएस उववज्जित्तए भंते! कति पुढवीसु उववज्जेज्जा ?
गोयमा! सत्तसु पुढवीसु उववज्जेज्जा, तं जहा - रयणप्पभाए जाव अहेसत्तमाए ।
[५३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क-संज्ञीपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जो जीव, नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितनी नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होता है ।
[५३ उ.] गौतम! वह सातों ही नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होता है, यथा— रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तम
पृथ्वी ।
विवेचन — निष्कर्ष — उपर्युक्त तीन प्रश्नों (५१ से ५३ तक) के उत्तर का सार यह है कि जो नैरयिक
१. (क) भगवती. (हिन्दी विवेचन, पं. घेवरचंदजी ) भा. ६, पृ. २९८६
(ख) भगवती. अ. वृत्ति पत्र ८०९