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वीसवां शतक : उद्देशक-१०]
[७३ फलितार्थ—चारों जाति के देव और नारक निरुपक्रमायुष्क होते हैं। शेष संसारी जीवों में दोनों ही प्रकार की आयु वाले जीव होते हैं। मनुष्यों और तिर्यञ्चों में असंख्यात वर्ष की आयु वाले तथा चरमशरीरी मनुष्य और उत्तमपुरुष निरुपक्रमायुष्क होते हैं। शेष मनुष्य, तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और एकेन्द्रिय जीवों का दोनों ही प्रकारों का आयुष्य होता है—सोपक्रम भी, निरुपक्रम भी। चौवीस दण्डकों में उत्पत्ति और उद्वर्त्तना की आत्मोपक्रम-परोपक्रम आदि विभिन्न पहलुओं से प्ररूपणा
७. नेरतियां णं भंते ! किं आओवक्कमेणं उववजंति, परोवक्कमेणं उववजंति, निरुवक्कमेणं उववजंति ?
गोयमा ! आओवक्कमेण वि उववजति, परोवक्कमेण वि उववजंति, निरुवक्कमेण वि उववज्जति।
[७ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव, आत्मोपक्रम से, परोपक्रम से या निरुपक्रम से उत्पन्न होते हैं ? ... [७ उ.] गौतम ! आत्मोपक्रम से भी उत्पन्न होते हैं, परोपक्रम से भी और निरुपक्रम से भी उत्पन्न होते
८. एवं जाव वेमाणिया। [८] इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए।
९. नेरतिया णं भंते ! किं आओवक्कमेणं उबटुंति, परोवक्कमेणं उव्वटंति, निरुवक्कमेणं उव्वटंति ?
गोयमा ! नो आओवक्कमेणं उव्वटंति, नो परोवक्कमेणं उव्वटंति, निरुवक्कमेणं उब्वटंति। [९ प्र.] भगवन् ! नैरयिक आत्मोपक्रम से उद्वर्त्तते (मरते) हैं अथवा परोपक्रम से या निरुपक्रम से
उद्वर्त्तते हैं?
[९ उ.] गौतम ! वे न तो आत्मोपक्रम से उद्वर्त्तते हैं और न परोपक्रम से; किन्तु निरुपक्रम से उद्वर्तित होते हैं।
१०. एवं जाव थणियकुमारा। .. [१०] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। १. वेवा नेरइया वि य, असंखवासाउया य तिरि-मणुआ।
उत्तमपुरिसा य तहा चरिमसरीरा निरुवक्कमा ॥१॥ सेसा संसारत्था हेवज, सोवक्कमा उ इयरे य। सोवक्कम-निरुवक्कम-भेओ, भणिओ समासेणं ॥२॥ -भगवती. अ. वृ. पत्र ७९५