Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचमे 'गुम्म' वग्गे : दस उद्देसगा पंचम 'गुल्म' वर्ग : दश उद्देशक
इक्कीसवें शतक के प्रथम वर्गानुसार पंचम गुल्मवर्ग का निरूपण
१.अह भंते ! सिरियक-णवमालिय-कोरंटग-बंधुजीवग-मणोजा, जहा पण्णवणाए पढमपए,' गाहाणुसारेणं जाव नलणीय-कुंद-महाजातीणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति०? . एवं एत्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा सालीणं ( स० २१ व० १ उ० १-१०)।
॥ बावीसइमे सए : पंचमो वग्गो समत्तो॥ २२-५॥ [१ प्र.] भगवन् ! सिरियक, नवमालिक, कोरंटक, बन्धुजीवक, मणोज, इत्यादि सब नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार नलिनी, कुन्द और महाजाति (तक जानने चाहिए;) इन सब पौधों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१ उ.] गौतम ! यहाँ भी मूलादि समग्र दश उद्देशक (इक्कीसवें शतक के प्रथम ) शालिवर्ग के समान (जानने चाहिए।)
॥ बाईसवाँ शतक : पंचम वर्ग समाप्त ॥
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१. देखिए प्रज्ञापनासूत्र की ये गाथाएँ
सेण (सिरि) यए णोमालिय कोरंटय-बंधुजीवग-मणोजे । पिइयं पाणं कणयर कुंजय तह सिंदुवारे य॥ २३ ॥ जाई-मोग्गर तह जूहिया य तह मल्लिया य वासंती। वत्थुल कत्थुल सेवाल गंठी मगदंतिया चेव ॥ २४ ॥ चं पक-जी (जा) ई णीइया कुंदो तहा महाजाई॥
- प्रज्ञापना पद १, पत्र ३२-२