Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
[१०१
चउत्थे 'वंस' वग्गे : दस उद्देसगा चतुर्थ वंश' वर्ग : दश उद्देशक
प्रथम शालिवर्ग के अनुसार चतुर्थ वंशवर्ग का निरूपण
१. अह भंते ! वंस-वेणु-कणग-कक्कावंस-चारुवंस-उडाकुडा-विमा-कंडा-वेणुयाकल्लाणीणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति०? एवं एत्थ वि मूलाईया दस उद्देसगा जहेव सालीणं, नवरं देवो सव्वत्थ वि न उववज्जति। तिन्नि लेसाओ। सव्वत्थ वि छव्वीसं भंगा। सेसं तं चेव।
॥ एगवीसइमे सए : चउत्थो वग्गो समत्तो॥२१-४॥ [१ प्र.] भगवन् ! बांस, वेणु, कनक, कर्कावंश, चारुवंश, उड़ा (दण्डा), कुडा, विमा, कण्डा, वेणुका और कल्याणी, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आ कर उत्पन्न होते
__[१ उ.] (गौतम !) यहाँ भी पूर्ववत् शालि-वर्ग के समान मूल आदि दश उद्देशक कहने चाहिए। विशेष यह है कि देव यहाँ किसी स्थान में उत्पन्न नहीं होते। सर्वत्र तीन लेश्याएँ और उनके छब्बीस भंग जानने चाहिए। शेष सब पूर्ववत्।
॥ इक्कीसवाँ शतक : चतुर्थ वर्ग समाप्त॥
***