Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छट्ठे 'दब्भ' वग्गे : दस उद्देसगा छठा 'दर्भ' वर्ग : दश उद्देशक
चतुर्थ वंशवर्गानुसार छठे दर्भवर्ग का निरूपण
१. अह भंते ! सेडिय - भंतिय' - कोंतिय-दब्भ-कुस - पव्वग- पोदइल-अज्जुण- आसाढगरोहियंस-मुतव-खीर- भुस - एरंड - कुरुकुंद - करकर-सुंठ-विभंगु-महुरयण' - थुरग-सिप्पियसुंकलितसिणं जे जीवा मूसत्ताए वक्कमंति० ? एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहेव वंसवग्गो । ॥ एगवीसइमे सए : छट्टो वग्गो समत्तो ॥ २१-६॥
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[१ प्र.] भगवन् ! सेडिय (संडिय), भंतिय (भण्डिय), कौन्तिय, दर्भ-कुश, पर्वक, पोदेइल (पोदीना), अर्जुन,. आषाढक, रोहितकं (रोहितांश), मुतअ, खीर (समू, अवखीर या तवखीर), भुस, एरण्ड, कुरुकुन्द, करकर (करवर), सूंठ, विभंगु, मधुरयण (मधुवयण), थुरग, शिल्पिक और सुंकलितृण, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१ उ.] गौतम ! यहाँ भी चतुर्थ वंशवर्ग के समान समग्र मूल आदि दश उद्देशक कहने चाहिए।
॥ इक्कीसवाँ शतक : छठा वर्ग समाप्त ॥
पाठान्तर - १. भंडिय- कोतिय-दब्भ-कुस - दब्भग- योदइल - अंजुण - । २. वयण
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