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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरतिया चुलसीतीहिं य नोचुलसीतीए य समज्जिया; से ते ठेणं जाव समज्जिया वि ।
[४९-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि (नैरयिक) यावत् ( अनेक-चतुरशीति-नोचतुरशीति - ) समर्जित भी हैं ?
[४९-२ उ.] गौतम ! जो नैरयिक ( एक समय में एक साथ) चौरासी प्रवेशनक से (८४ संख्या में) प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीतिसमर्जित हैं। जो नैरयिक जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट तेयासी (८३) (एक साथ) प्रवेश करते हैं, वे नो- चतुरशीतिसमर्जित हैं । जो नैरयिक एक साथ, एक समय में चौरासी तथा जघन्य एक, दो, तीन, यावत् उत्कृष्ट तेयासी प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीति - नोचतुरशीतिसमर्जित हैं और जो नैरयिक एक-एक समय में अनेक चौरासी तथा जघन्य एक-दो-तीन उत्कृष्ट तेयासी प्रवेश करते हैं, वे अनेक चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित हैं । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि नैरयिक चतुरशीतिसमर्जित भी हैं, यावत् अनेक चतुरशीति-नो- चतुरशीति- समर्जित भी है।
५०. एवं जाव थणियकुमारा ।
[५०] इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए ।
५१. पुढविकाइया तहेव पच्छिल्लएहिं दोहिं, नवरं अभिलावो चुलसीतिईओ ।
[५१] पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में अनेक चतुरशीतिसमर्जित और अनेक चतुरशीति-नोचतुरशीतिसमर्जित, ये दो पिछले भंग समझने चाहिए। विशेष यह कि यहाँ 'चौरासी' ऐसा कहना चाहिए ।
५२. एवं जाव वणस्सतिकाइया ।
[५२] इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों तक (पूर्वोक्त दो भंग) जानने चाहिए।
५३. बेइंदिया जाव वेमाणिया जहा नेरइया ।
[ ५३ ] द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर वैमानिकों तक नैरयिकों के समान (आलापक कहने चाहिए।) ५४. [ १ ] सिद्धाणं पुच्छा ।
गोयमा ! सिद्धा चुलसीतिसमज्जिता वि, नोचुलसीतिसमज्जिया वि, चुलसीतीए य नोचुलसीतीए य समज्जिया वि, नो चुलसीतीहिं समज्जिया, नो चुलसीतीहि य नोचुलसीतीए य समज्जिया ।
[५४-१ प्र.] भगवन् ! सिद्ध चतुरशीतिसमर्जित हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ?
[५४-१ उ.] गौतम ! सिद्ध भगवान् चतुरशीतिसमर्जित भी हैं तथा नो- चतुरशीतिसमर्जित भी हैं तथा चतुरशीति-नो- चतुरशीतिसमर्जित भी हैं, किन्तु वे अनेक चतुरशीतिसमर्जित नहीं हैं, और न ही वे अनेक