________________
[९१
एगवीसतिमं सयं : इक्कीसवाँ शतक
इक्कीसवें शतक के आठ वर्गों के नाम तथा ८० उद्देशकों का निरूपण १. सालि १ कल २ अयसि ३ वंसे ४ उक्खू ५ दब्भे ६ य अब्भ ७ तुलसी ८ य।
अद्वैते दसवग्गा असीति पुण होंति उद्देसा॥१॥ । [१. गाथार्थ—] (१) शालि, (२) कलाय, (३) अलसी, (४) बांस, (५) इक्षु, (६) दर्भ (डाभ), (७) अभ्र (वनस्पति), (८) तुलसी, इस प्रकार इक्कीसवें शतक में ये आठ वर्ग हैं । प्रत्येक वर्ग में दस-दस उद्देशक हैं । इस प्रकार आठ वर्गों में कुल ८० उद्देशक हैं।
विवेचन—आठ वर्गों में प्रतिपाद्य-विषय—इक्कीसवें शतक में कुल आठ वर्ग हैं। जिनमें मुख्यतया प्रतिपाद्य विषय इस प्रकार हैं- (१) शालि—इस वर्ग में शालि आदि धान्यों की उत्पत्ति आदि के विषय में वर्णन है । (२) कलाय—मटर आदि दालों (धान्यों) की उत्पत्ति आदि से सम्बन्धित निरूपण है। (३) अलसी—इस वर्ग में अलसी आदि तिलहनों से सम्बन्धित वर्णन है। (४) वंस—इसमें बांस आदि वनस्पतियों का वर्णन है।(५) इक्षु—इसमें गन्ना आदि पर्ववाली वनस्पति से सम्बन्धित वर्णन है।(६) दर्भ-डाभ आदि तृण के विषय में वर्णन है।(७) अभ्र—इस वर्ग में अभ्र नामक वनस्पति के समान अनेक वनस्पतियों सम्बन्धी वर्णन है । ( ८) तुलसी—इस वर्ग में तुलसी आदि वनस्पतियों से सम्बन्धित वर्णन है।
प्रत्येक वर्ग में दस-दस उद्देशक इस प्रकार हैं—(१) मूल, (२) कन्द, (३) स्कन्ध, (४) त्वचा, (५) शाखा, (६) प्रवाल (कोमल पत्ते), (७) पत्र, (८) पुष्प, (९) फल और (१०) बीज। इस तरह प्रत्येक वर्ग में ये दस उद्देशक हैं।
ॐॐॐ
१. भगवती. विवेचन भाग ६, (पं. घेवरचंदजी), पृ. २९३० २. मृले १. कंदे २. खंधे ३. तया ४. य साले ५. पवाल ६. पत्ते य ७ । पुप्फे फल ८-९. य वीए १०. वि य एक्केक्को होई उद्देसो ॥१॥
-भगवती. अ. वृत्ति, पृ. ८००