Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वीसवाँ शतक : उद्देशक-१०]
[८५ द्वादश, नोद्वादश आदि से समर्जित चौवीस दण्डकों तथा सिद्धों का अल्पबहुत्व
४८. एएसि णं भंते ! नेरइयाणं बारससमज्जियाणं० । सव्वेसिं अप्पाबहुगं जहा छक्कसमजियाणं, नवरं बारसाभिलावो, सेसं तं चेव।
[४८ प्र.] भगवन् ! इन द्वादशसमर्जित यावत् अनेक द्वादश-नो-द्वादशसमर्जित नैरयिकों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ?
[४८ उ.] गौतम ! जिस प्रकार षट्कसमर्जित आदि जीवों का अल्पबहुत्व कहा, उसी प्रकार द्वादशसमर्जित आदि सभी जीवों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। विशेष इतना है कि 'षट्क' के स्थान में 'द्वादश', ऐसा अभिलाप करना (कहना) चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है।
_ विवेचन द्वादशसमर्जित आदि का अल्पबहुत्व षट्कसमर्जित आदि के समान ही है। केवल षट्क के बदले द्वादश शब्द का प्रयोग करना चाहिए। चौवीस दण्डकों और सिद्धों में चतुरशीतिसमर्जित आदि पदों का यथायोग्य निरूपण
४९. [१] नेरतिया णं भंते ! किं चुलसीतिसमजिया, नोचुलसीतिसमजिया चुलसीतीए य नोचुलसीतीते य समज्जिया, चुलसीतीहिं समज्जिया, चुलसीतीहि य नोचुलसीतीए य समजिया ?
गोयमा ! नेरतिया चुलसीतिसमज्जिया वि जाव चुलसीतिहि य नोचुलसीतीए य समजिया वि।
[४९-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव चतुरशीति (चौरासी)-समर्जित हैं या नो-चतुरशीति समर्जित हैं, अथवा चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित हैं, या वे अनेक चतुरशीतिसमर्जित हैं, अथवा अनेक-चतुरशीतिनो-चतुरशीतिसमर्जित हैं ?
[४९-१ उ.] गौतम ! नैरयिक चतुरशीतिसमर्जित भी हैं, यावत् अनेक-चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसमर्जित भी हैं।
[२] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चई जाव समज़िया वि ?
गोयमा ! जे णं नेरइया चुलसीतीएणं पवेसएणं पविसंति ते णं नेरइया चुलसीतिसमज्जिया। जे णं नेरइया जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं तेसीतिपवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया नोचुलसीतिसमजिया। जे णं नेरइया चुलसीतीएणं; अन्नेण य जहन्नेणं एक्केणं वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं तेसीतीएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरतिया चुलसीतीए य नोचुलसीतीए समजिया।जे णं नेरइया णेगेहिं चुलसीतीएहिं पवेसणगं पविसंति ते णं नेरतिया चुलसीतीहिं समजिया। जे णं नेरइया णेगेहिं चुलसीतीएहिं, अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा जाव उक्कोसेणं तेसीतीएणं जाव