Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दसमो उद्देसओ : 'सोवक्कमा जीवा'
दसवाँ उद्देशक : 'सोपक्रम जीव' चौवीस दण्डकों में सोपक्रम एवं निरुपक्रम आयुष्य की प्ररूपणा
१. जीवा णं भंते ! किं सोवक्कमाउया, निरुवक्कमाउया ? गोयमा ! जीवा सोवक्कमाउया वि निरुवक्कमाउया वि। [१ प्र.] भगवन् ! जीव सोपक्रम-आयुष्य वाले होते हैं या निरुपक्रम-आयुष्य वाले होते हैं ? [१ उ.] गौतम ! जीव सोपक्रम-आयुष्य वाले भी होते हैं और निरुपक्रम-आयु वाले भी। २. नेरतिया णं० पुच्छा। गोयमा ! नेरतिया नो सोवक्कमाउया, निरुवक्कमाउया। [२ प्र.] भगवन् ! नैरयिक सोपक्रम-आयुष्य वाले होते हैं, अथवा निरुपक्रम-आयुष्य वाले ? [२ उ.] गौतम ! नैरयिक जीव सोपक्रम-आयुष्य वाले नहीं होते, वे निरुपक्रम-आयुष्य वाले होते
___३. एवं जाव थणियकुमारा।
[३] इसी प्रकार (नैरयिकों के समान) स्तनितकुमारों-पर्यन्त (जानना चाहिए।) ४. पुढविकाइया जहा जीवा। [४] पृथ्वीकायिकों का आयुष्य औधिक जीवों के (सू. १ के अनुसार) जानना चाहिए। ५. एवं जाव मणुस्सा। [५] इसी प्रकार मनुष्यों-पर्यन्त कहना चाहिए। ६. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा नेरतिया। [६] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों का (आयुष्यसम्बन्धी कथन) नैरयिकों के समान है।
विवेचन–सोपक्रम और निरुपक्रम आयुष्य वालों का लक्षण–सोपक्रम और निरुपक्रम, ये दोनों जैनपारिभाषिक शब्द हैं। उपक्रम कहते हैं—(व्यवहार से) अप्राप्तकाल (असमय) में ही आयुष्य के समाप्त हो जाने को। जिन जीवों का आयुष्य उपक्रम सहित है, वे सोपक्रमायुष्क कहलाते हैं, इसके विपरीत जिन जीवों का आयुष्य बीच में टूटता नहीं है, असमय में समाप्त नहीं होता, वे निरुपक्रमायुष्क कहलाते हैं।' १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७९५
(ख) भगवती. विवेचन, भा. ६ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. २९२१