Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र इसी प्रकार जब दोनों प्रदेश एक गन्ध वाले होते हैं, तब असंयोगी दो भंग होते हैं और जब दोनों प्रदेश दो गन्ध वाले होते हैं, तब द्विकसंयोगी एक भंग होता है। इसी प्रकार जब दोनों प्रदेश एक रस वाले हों तो असंयोगी ५ भंग होते हैं और जब दोनों प्रदेश भिन्न-भिन्न दो रस वाले हों तब दस भंग होते हैं। इसी प्रकार स्पर्श के द्विकसंयोगी ४ भंग और त्रिसंयोगी ४ भंग तथा चतु:संयोगी १ भंग होता है। इस प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध में वर्ण के १५, गन्ध के ३, रस के १५, और स्पर्श के ९, ये सब मिला कर ४२ भंग होते हैं।' त्रिप्रदेशी स्कन्ध में वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श की प्ररूपणा
३. तिपएसिए णं भंते ! खंधे कतिवण्णे० ?
जहा अट्ठारसमसए (स० १८ उ० ६ सु०८) जाव चउफासे पन्नत्ते। जति एगवण्णे-सिय कालए जाव सुक्किलए ५। जति दुवण्णे-सिय कालए य नीलए य १, सिय कालए य नीलगा य २, सिय कालगा य नीलए य ३; सिए कालए य लोहियए य १, सिय कालए य लोहियगा य २, सिय कालगा य लोहियए य ३; हालिद्दएण वि समं ३; एवं सुक्किलएण वि समं ३, सिय नीलए य, लोहियए य एत्थ वि भंगा ३; एवं हालिद्दएण वि भंगा ३, एवं सुक्किलएण वि समं भंगा ३; सिय लोहियए य हालिद्दए य, भंगा ३; एवं सुक्किलएण वि समं ३; सिय हालिद्दए य सुक्किलए य भंगा ३। एवं सव्वेते दस दुयासंजोगा भंगा तीसं भवंति। जति तिवण्णे-सिय कालए य नीलए य लोहियए य १, सिय कालए य नीलए य हालिद्दए य २, सिय कालए य नीलए य सुक्किलए य ३, सिय कालए य लोहियए य हालिद्दए य ४, सिए कालए य लोहियए य सुक्किलए य ५, सिय कालए य हालिद्दए य सुक्किलए य ६, सिय नीलए य लोहियए य हालिद्दए य ७, सिय नीलए य लोहियए य सुक्किलए य८, सिय नीलए य हालिद्दए य सुक्किलए य ९, सिय लोहियए य हालिद्दए य सुक्किलए य १०, एवं एए दस तिया संयोगे भंगा। जति एगगंधे—सिय सुन्भिगंधे १, सिय दुब्भिगंधे २; जति दुगंधे—सिय सुब्भिगंधे य, दुब्भिगंधे य, भंगा ३।
रसा जहा वण्णा।
जदि दुफासे—सिय सीए य निद्धे य। एवं जहेव दुपएसियस्स तहेव चत्तारि भंगा ४। जति तिफासे-सव्वे सीए, देसे निद्धे, देसे लुक्खे १; सव्वे सीए, देसे निद्धे, देसा लुक्खा २; सव्वे सीते, देसा निद्धा, देसे लुक्खे ३; सव्वे उसिणे, देसे निद्धे, लुक्खे एत्थ वि भंगा तिन्नि ३; सव्वे निद्धे, देसे सीते, देसे उसिणे-भंगा तिन्नि ३; सव्वे लुक्खे देसे सीए, देसे उसिणे-भंगा तिनि, [१२]। जति चउफासे—देसे सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे १; देसे सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसा लुक्खा २; देसे सीए, देसे उसिणे, देसा निद्धा, देसे लुक्खे ३; देसे सीए, देसा उसिणा, देसे निद्धे, देसे लुक्खे ४; देसे सीए, देसा उसिणा, देसे निद्धे, देसा लुक्खा ५, देसे सीए, देसा उसिणा, देसा निद्धा, देसे लुक्खे ६, देसा सीया, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे ७; देसा सीया, देसे उसिणे, देसे निद्धे,
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७८२-७८३ . (ख) भगवती. हिन्दी विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. ६, पृ. २८४७-२८४८