Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
अनेकदेश रूक्ष होते हैं; यह चौसठवाँ भंग है। इस प्रकार यहाँ भी चौसठ भंग होते हैं। [१-६४] अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वस्निग्ध, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण होता है; यावत् कदाचित् सर्वमृदु, सर्वरूक्ष, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, अनेकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण होता है। यह चौसठवाँ भंग है।इस प्रकार यहाँ भी १६+१६+१६+१६ = ६४ भंग होते है। कदाचित् सर्वगुरु, सर्वशीत, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश उष्ण होता है, इस प्रकार यावत् — सर्वलघु, सर्वउष्ण, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं; यह चौसठवाँ भंग है। इस प्रकार यहाँ भी ६४ भंग होते हैं ।
[१-६४] कदाचित् सर्वगुरु, सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण होता है; यावत् कदाचित् सर्वउष्ण, सर्वरूक्ष, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश शीत और अनेकदेश रूक्ष होते हैं; यह चौंसठवाँ भंग है। इस प्रकार यहाँ भी ६४ भंग होते हैं।
[१-६४] कदाचित् सर्वशीत, सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु और एकदेश लघु होता है; यावत् कदाचित् सर्वउष्ण, सर्वरूक्ष, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु होता है । यह चौसठवाँ भंग है। इस प्रकार यहाँ भी चौसठ भंग होते हैं। षट्स्पर्श सम्बन्धी ये सब ६४x६=३८४ भंग होते हैं ।
यदि वह सात स्पर्श वाला होता है तो (१) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश, शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है। (२-३-४) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और अनेकदेश रूक्ष होते हैं (इस प्रकार चार भंग होते हैं।), (२) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है, इत्यादि चार भंग । (३) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इत्यादि चार भंग तथा (४) कदाचित् सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष इत्यादि चार भंग; ये सब मिलाकर ४४४ = १६ भंग होते हैं । अथवा कदाचित् (२) सर्वकर्कश, एकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है। इस प्रकार 'गुरु' पद को एकवचन में और 'लघु' पद को अनेक (बहु-) वचन में रखकर पूर्ववत् यहाँ भी सोलह भंग कहने चाहिये। अथवा कदाचित् (३) सर्वकर्कश, अनेकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध एवं एकदेश रूक्ष, इत्यादि, ये भी सोलह भंग कहने चाहिए। (४) अथवा कदाचित् सर्वकर्कश, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, ये सब मिलकर सोलह भंग कहने चाहिए।
इस प्रकार ये १६×४=६४ भंग 'सर्वकर्कश' के साथ होते हैं ।
(२) अथवा कदाचित् सर्वमृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध, और एकदेश रूक्ष होता है। रूक्ष की तरह 'मृदु' शब्द के साथ भी पूर्ववत् १६x४=६४ भंग होते हैं ।