Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
वीसवाँ शतक : उद्देशक-६]
[४९ [१३] इसी प्रकार सहस्रार और आनत-प्राणत कल्प के बीच में मरणसमुद्घात करके पुनः अध:सप्तमपृथ्वी
तक.............
१४. एवं आणय-पाणयाणं आरणऽच्चुयाण य कप्पाणं अंतरा० पुणरवि जाव अहेसत्तमाए।
[१४] इसी प्रकार आनत-प्राणत और आरण-अच्युत कल्प के बीच में मरणसमुद्घात करके पुनः अधःसप्तमपृथ्वी तक ..........।
१५. एवं आरणऽच्चुयाणं गेवेजविमाणाण य अंतरा० जाव अहेसत्तमाए०।
[१५] इसी प्रकार आरण-अच्युत और ग्रैवेयक विमानों के अन्तराल में, मरणसमुद्घात करके पुनः अधःसप्तमपृथ्वी तक ........|
१६. एवं गेवेज्जविमाणाण अनुत्तर विमाणाण य अंतरा० पुणरवि जाव अहेसत्तमाए।
[१६] इसी प्रकार ग्रैवेयकविमानों और अनुत्तरविमारों के अन्तराल में (मरणसमुद्घातपूर्वक) पुनः अध:सप्तमपृथ्वी तक ............।
१७. एवं अणुत्तरविमाणाणं ईसिपब्भाराए य अंतरा० पुणरवि जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्वो।
[१७] इसी प्रकार अनुत्तरविमानों और ईषत्प्राग्भारापृथ्वी के अन्तराल में (मरणसमुद्घातपूर्वक) पुनः अधःसप्तमपृथ्वी तक .........।
विवेचन—प्रस्तुत १२ सूत्रों (सू. ६ से १७ तक) में पहले से विपरीत निरूपण है। अर्थात् पहले के आलापकों में सात नरकपृथ्वियों में से दो-दो के मध्य में मरणसमुद्घात का निरूपण था, इन आलापकों में सौधर्मदेवलोक से ईषत्प्रारभारापृथ्वी तक में से चार, तीन या अधिक देवलोकों के बीच में मरणसमुद्घात करने का वर्णन है। वहाँ सौधर्म से लेकर ईषत्प्राग्भरापृथ्वी तक उत्पन्न होने योग्य पृथ्वीकायिक विशेषण तथा यहाँ उसके स्थान पर रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर अधःसप्तमपृथ्वी तक में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वीकायिक का विशेषण
है
।
पृथ्वीकायिकविषयक सूत्रों के अतिदेशपूर्वक अप्कायिकविषयक पूर्व-पश्चात् आहारउत्पाद-निरूपण
१८. आउकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समो० जे भविए सोहम्मे कप्पे आउक्काइयत्ताए उववजित्तए० ?
सेसं जहा पुढविकाइयस्स जाव से तेणठेणं०। . __[१८ प्र.] भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के बीच में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में अप्कायिक के रूप में उत्पन्न होने योग्य है, वह पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है या पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होता है ?
[१८ उ.] गौतम ! (अप्कायिक नाम के सिवाय) शेष समग्र (समाधान) पृथ्वीकायिक (इसी उद्देशक