Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वीसवां शतक : उद्देशक-७]
[५७ २ अज्ञान के विषय—ये ११ बोल कम हुए) । भवनवासी और वाणव्यन्तर देवों में ४६ बोल, उपर्युक्त ४४ में से एक नपुंसक वेद कम तथा २ वेद और १ लेश्या अधिक)। ज्योतिषक देवों में ४३ बोल (उपर्युक्त ४६ में से ३ लेश्या कम), वैमानिक देवों में ४५ बोल (उपर्युक्त ४३ में दो लेश्याएँ अधिक)। पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय में ३५ बोल (८ कर्म, ८ कर्मोदय, १ वेद, १ दर्शनमोह, १ चारित्रमोह, ३ शरीर, ४ संज्ञा, ४ लेश्या, १ दृष्टि, २ अज्ञान, २ अज्ञान के विषय, यों कुल ३५)। अग्निकाय में ३४ बोल (उपर्युक्त ३५ में से १ लेश्या कम)। वायुकाय में ३५ बोल (उपर्युक्त ३४ में १ शरीर बढा)। तीन विकलेन्द्रिय में ३९ बोल (उपर्युक्त ३४ में १ दृष्टि २ ज्ञान और दो ज्ञान के विषय बढे) । तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय में ५० बोल, (५५ में से १ शरीर, २ ज्ञान, २ ज्ञान के विषय कम हुए) तथा मनुष्य में ५५ बोल पाए जाते हैं । २४ दण्डकों में ५५ में जितने-जितने बोल पाए जाते हैं, उनमें से प्रत्येक में त्रिविध बन्ध होते हैं।'
॥ वीसवाँ शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त॥
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१. (क) भगवती उपक्रम पृ. ४५९ (ख) पगडी ८ उदये ८ वेए ३ दंसणमोहे चरित्ते य।
ओरालिय-वेउव्विय-आहारग-तेय-कम्मए चेव॥१॥ सन्ना ४ लेस्सा ६ दिट्ठी ३ णाणाऽणाणेसु ५+३, तव्विसय ८। जीवप्पओगवंधे अणंतर-परंपरे च बोद्धव्वे। ॥२॥ -अ.व.