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वीसवाँ शतक : उद्देशक-८]
११. श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति, १७. कुन्थु, १८. अर, १९. . मुनिसुव्रत, २१. नमि, २२. नेमि, २३. पार्श्व और २४. वर्द्धमान (महावीर ) ।
मल्लि, २०.
विवेचन— कतिपय तीर्थंकरों के नामान्तर — प्रस्तुत सूत्र में कितने ही तीर्थंकरों के दूसरे नाम का उल्लेख किया गया है । यथा— पद्मप्रभ का सुप्रभ, चन्द्रप्रभ का शशि, सुविधिनाथ का पुष्पदन्त, अरिष्टनेमी का नेमि और महावीर का वर्द्धमान नाम से उल्लेख किया गया है।
चौवीस तीर्थंकरों के अन्तर तथा तेइस जिनान्तरों में कालिकश्रुत के व्यवच्छेद- अव्यवच्छेद का निरूपण
८. एएसि णं भंते ! चउवीसाए तित्थयराणं कति जिणंतरा पन्नत्ता ?
गोयमा ! तेवीसं जिणंतरा पन्नत्ता ।
[८ प्र.] भगवन् ! इन चौवीस तीर्थंकरों के कितने जिनान्तर (तीर्थंकरों के व्यवधान) कहे गए हैं ?
[८ उ.] गौतम ! इनके तेईस अन्तर कहे गए हैं।
९. एएसं णं भंते ! तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कहिं कालियसुयस्स वोच्छेदे पन्नत्ते ?
गोयमा ! एएसु णं तेवीसाए जिणंतरेसु पुरिम- पच्छिमएस अट्ठसु अट्ठसु जिणंतरेसु, एत्थ णं कालियसुयस्स अवोच्छेदे पन्नत्ते, मज्झिमएसु सत्तसु जिणंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स वोच्छेदे पन्नत्ते, सव्वत्थ वि णं वोच्छिन्ने दिट्ठिवाए ।
[९ प्र.] भगवन् ! इन तेईस जिनान्तरों में किस जिन के अन्तर में कब कालिकश्रुत (सूत्र) का विच्छेद (लोप) कहा गया है ?
[९ उ.] गौतम ! इन तेईस जिनान्तरों में से पहले और पीछे के आठ-आठ जिनान्तरों (के समय) में कालिकश्रुत ( सूत्र ) का अव्यवच्छेद (लोप नहीं) कहा गया है और मध्य के आठ जिनान्तरों में कालिकश्रुत का व्यवच्छेद कहा गया है; किन्तु दृष्टिवाद का व्यवच्छेद तो सभी जिनान्तरों (के समय) में हुआ है ।
विवेचन — कालिकश्रुत और अकालिकश्रुत का स्वरूप-जिन सूत्रों (शास्त्रों) का स्वाध्याय दिन और रात्रि के पहले और अन्तिम पहर में ही किया जाता हो, उन्हें कालिकश्रुत कहते हैं। जैसे - आचारांग आदि २३ सूत्र, (११ अंगशास्त्र, निरयावलिका आदि ५ सूत्र, चार छेदसूत्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति और उत्तराध्ययनसूत्र)। जिन सूत्रों का स्वाध्याय (अस्वाध्याय के समय या परिस्थिति को छोड़कर) सभी समय किया जा सकता हो, उन्हें उत्कालिक श्रुत कहते हैं। जैसे—दशवैकालिक आदि ९ सूत्र ( दशवैकालिक, नन्दीसूत्र, अनुयोगद्वार, औपपातिकसूत्र, राजप्रश्नीय, सूर्यप्रज्ञप्ति, जीवाभिगम, प्रज्ञापना और आवश्यकसूत्र ) । कालिकश्रुत का विच्छेद कब और कितने काल तक ? – नौवें तीर्थंकर श्रीशान्तिनाथ भगवान् तक सात अन्तरों (मध्यकाल) में कालिकश्रुत का विच्छेद (लोप) हो गया था और दृष्टिवाद का विच्छेद तो सभी