Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
५४]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
१०. एवं वेमाणियाणं। [१०] इसी प्रकार वैमानिकों तक (उदयप्राप्त० ..........।) ११. एवं जाव अंतराइओदयस्स।
[११] और इसी प्रकार (के उदयप्राप्त दर्शनावरणीय से लेकर) अनन्तराय कर्म तक के (बन्ध-प्रकार के विषय में कहना चाहिए।)
विवेचन—णाणावरणिजोदयस्स : तीन व्याख्याएँ-वृत्तिकार ने प्रस्तुत सू. ८ की इस पंक्ति की तीन व्याख्याएँ प्रस्तुत की हैं—(१) ज्ञानावरणीय के उदयरूप कर्म का, अर्थात्-उदय-प्राप्त ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध, यह बन्ध भूतभाव (पूर्वकाल) की अपेक्षा से समझना चाहिए, (२) अथवा ज्ञानावरणीय रूप में जिस कर्म का उदय है, ऐसे कर्म का बन्ध समझना चाहिए, क्योंकि ज्ञानावरणीयादि कर्म ज्ञानादि का आवारक रूप होने से कुछ विपाक से और कुछ प्रदेश से वेदा जाता है, अतः विपाकोदय से वेदे जाने योग्य उदय को ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध समझना चाहिए। (३) अथवा ज्ञानावरणीय के उदय में जो ज्ञानावरणीयकर्म बंधता है अथवा वेदा जाता है, वह भी ज्ञानावरणीय कर्म का उदय ही है, उस कर्म का बन्ध समझना।' वेदत्रय तथा दर्शनमोहनीय-चारित्रमोहनीय में त्रिविधबन्ध-प्ररूपणा
१२. इत्थिवेदस्स णं भंते ! कतिविधे बंधे पनत्ते ? गोयमा ! तिविधे बंधे पन्नत्ते। एवं चेव। [१२ प्र.] भगवन् ! स्त्रीवेद का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [१२ उ.] गौतम ! उसका पूर्ववत् तीन प्रकार का बन्ध कहा गया है। १३. असुरकुमाराणं भंते ! इत्थिवेदस्स कतिविधे बंधे पन्नत्ते ? एवं चेव। [१३ प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के स्त्रीवेद का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [१३ उ.] (गौतम ! ) पूर्ववत् (तीन प्रकार का है।) १४. एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं जस्स इत्थिवेदो अत्थि।
[१४] इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना चाहिए। विशेष यह कि जिसके स्त्रीवेद है, (उसके लिए ही यह जानना चाहिए।)
१.
(क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७९१ (ख) भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी), भा. ६ पृ. २८९९