Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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गोशालक के सम्बन्ध में जितनी विस्तृत सामग्री प्रस्तुत आगम में है, उतनी अन्य आगमों में नहीं है। ऐतिहासिक तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ और उनके अनुयायियों का तथा उनके चातुर्याम धर्म के सम्बन्ध में प्रस्तुत आगम में पर्याप्त जानकारी है । प्रस्तुत आगम से यह सिद्ध है कि भगवान् महावीर के समय में भगवान् पार्श्वनाथ के सैकड़ों श्रमण थे। उन श्रमणों ने भगवान् महावीर के अनुयायियों से और उनके शिष्यों से चर्चाएं कीं। वे भगवान् महावीर के ज्ञान से प्रभावित हुए। उन्होंने चातुर्याम धर्म के स्थान पर पंच महाव्रत रूप धर्म को स्वीकार किया। इस आगम में महाराजा कूणिक और महाराजा चेटक के बीच जो महाशिलाकण्टक और रथमूसल संग्राम हुए थे, उन युद्धों का मार्मिक वर्णन विस्तार से साथ दिया गया है। इन युद्धों में क्रमश: चौरासी लाख और छियानवै लाख वीर योद्धओं का संहार हुआ था । युद्ध कितना संहारकारी होता है, देश की सम्पत्ति भी विपत्ति के रूप में किस प्रकार परिवर्तित हो जाती है ! युद्ध में उन शक्तियों का संहार हुआ जो देश की अनमोल निधि थी। इसलिए युद्ध की भयंकरता बताकर उससे बचने का संकेत भी प्रस्तुत आगम में है । इक्कीसवें शतक से लेकर तेईसवें शतक तक वनस्पतियों का जो वर्गीकरण किया गया है, वह बहुत ही दिलचस्प है। इस वर्णन को पढ़ते समय ऐसा लगता है कि जैनमनीषी वनस्पति के सम्बन्ध में व्यापक जानकारी रखते थे ।
वनस्पतिकाय के जीव किस ऋतु में अधिक आहार करते हैं और किस ऋतु में कम आहार करते हैं, इस पर भी प्रकाश डाला है। वर्तमान विज्ञान की दृष्टि से यह प्रसंग चिन्तनीय है। प्रस्तुत आगम में 'आलूअ ' शब्द का प्रयोग अनन्तजीव वाली वनस्पति में हुआ है। यह 'आलू' अथवा 'आलुक' वनस्पति वर्तमान में प्रचलित "आलू" तू" से भिन्न प्रकार की थी या यही है ? भारत में पहले आलू की खेती होती थी या नहीं, यह भी अन्वेषणीय
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हैं ।
प्रस्तुत आगम में इतिहास, भूगोल, खगोल, समाज और संस्कृति, धर्म और दर्शन और उस युग की राजनीति आदि पर जो विश्लेषण किया गया है, वह शोधार्थियों के लिए अद्भुत है, अनूठा है। प्रश्नोत्तरों के माध्यम से जो आध्यात्मिक गुरु गंभीर तत्त्व समुद्घाटित हुए हैं, वह बोधप्रद हैं।
प्रस्तुत आगम में आजीवक संघ के आचार्य मंखलि गोशालक, जमाली, शिवराजर्षि, स्कन्धक संन्यासी आदि के प्रकरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। उस युग में वर्तमान युग की तरह संकीर्ण सम्प्रदायवाद नहीं था। उस युग के संन्यासी सत्य को प्राप्त करने के लिए तत्पर रहते थे । यही कारण है कि स्कन्धक संन्यासी जिज्ञासु बनकर भगवान् महावीर पास पहुँचे और जब उनकी जिज्ञासाओं का समाधान हो गया तो सम्प्रदायवाद सत्य को स्वीकार करने में बाधक नहीं बना। तत्त्व-चर्चा की दृष्टि से जयन्ती श्रमणोपासिका, मदुक श्रमणोपासक, रोह अनगार, सोमिल ब्राह्मण, कालास्यवेशीपुत्त और तुंगिया नगरी के श्रावकों के प्रश्न मननीय हैं। प्रस्तुत आगम में साधु, श्रावक और श्राविका के द्वारा किए गए प्रश्न आये हैं, पर किसी भी साध्वी के प्रश्न नहीं आये हैं। क्यों नहीं साध्वियों ने जिज्ञासाएं व्यक्त कीं ? वे समवसरण में उपस्थित होती थीं, उनके अन्तर्मानस में भी जिज्ञासाओं का सागर उमड़ता होगा, पर वे मौन क्यों रहीं ? यह विचारणीय है। प्रस्तुत आगम में जहाँ आजीवक, वैदिक परम्परा के तापस और परिव्राजक भगवान् पार्श्वनाथ के श्रमण और भगवान् महावीर के चतुर्विध संघ का इसमें निर्देश है, तथागत बुद्ध महावीर के समकालीन थे और दोनों का विहरणक्षेत्र भी बिहार आदि प्रदेश थे, पर न तो स्वयं बुद्ध
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