Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
ओर प्रेरित करता है । मिथ्यात्व से यथार्थ का बोध नहीं होता। मिथ्यात्व एक ऐसा रंगीन चश्मा है, जो वस्तु-तत्त्व का अयथार्थ भ्रान्त रूप प्रस्तुत करता है । अज्ञान, अविद्या और मोह के कारण ही जीव इस स्वरूप में रहता है ।
मिथ्यात्व के प्रभाव से जब अन्तर्हदय में सम्यक्त्व का दिव्य आलोक जगमगाने लगता है, तब जीव, आत्मा और शरीर के भेद समझने लगता है। और, बाह्य पदार्थों से वह ममत्व बुद्धि हटाकर अपने सही स्वरूप की ओर उन्मूख हो जाता है । अन्तरात्मा देहात्मबुद्धि से रहित होता है। वह भेद-विज्ञान से स्व और पर की भिन्नता को समझ लेता है । आत्म-गुण के विकास की दृष्टि से नियमसार की तात्पर्य वृत्ति टीका में अन्तरात्मा के भी तीन भेद किए हैं- १. जघन्य अन्तरात्मा-अविरत सम्यग्दृष्टि चतुर्थ गुणस्थानवर्ती आत्मा, २. मध्यम आत्मापांचवें गुणस्थान से उपशान्त मोह गुणस्थानवर्ती तक के जीव इस श्रेणी में आते हैं, ३. उत्कृष्ट अन्तरात्मा-बारहवें गुणस्थानवर्ती आत्मा इस श्रेणी में आते हैं।
कर्ममल से मुक्त राग-द्वेष विजेता, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी प्रात्मा ही परमात्मा है । शुद्धात्मा को परमात्मा कहा गया है। परमात्मा के अर्हन्त और सिद्ध-ये दो भेद किए गए हैं। तथा सकल परमात्मा और विकल परमात्मा-ये दो भेद भी किए गए हैं । बृहद् नयचक्र में परमात्मा के कारण-परमात्मा और कार्य-परमात्मा ये दो भेद किए गए हैं। अर्हन्त सकल-परमात्मा और कारण-परमात्मा के नाम से पहचाने जाते हैं, तो सिद्ध विकल-परमात्मा और कार्य-परमात्मा के नाम से जाने जाते हैं । अन्य भारतीय दर्शनों में प्रात्मा के ये तीन रूप उल्लिखित नहीं हैं, पर इससे मिलताजुलता रूप हम कठोपनिषद् में देखते हैं। वहाँ पर आत्मा के ज्ञानात्मा, महदात्मा और शान्तात्मा, ये तीन भेद किए गए हैं। छान्दोग्योपनिषद् के आधार पर डायसन ने आत्मा की तीन अवस्थाएं बताई हैं—शरीरात्मा, जीवात्मा और परमात्मा । इस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से साम्य देखा जा सकता है। बहिरात्मा से परमात्मा तक पहुँचने के लिये एक बहुत लम्बी यात्रा तय करनी पड़ती है । उस यात्रा में अनेक बाघायें समय-समय पर समुत्पन्न होती हैं-कभी उसे मिथ्यात्व रोकता है तो, कभी उसे कषाय और राग-द्वेष आगे बढ़ने में रुकावट डालते हैं। बहिरात्मा उनमें उलझ
१. श्रीमद् भगवद्गीता ३/३६ २. मोक्खपाहुड़ ५/६ ३. नियमसार, तात्पर्यवृत्ति टीका, गाथा १४६ ४. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा १६७ ५. (क) कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा १६६ (ख) द्रव्य संग्रह टीका, गाथा १४१ ६. सत्यशासन परीक्षा का ७. कठोपनिषद् १/३/१३ ८. परमात्मप्रकाश की अंग्रेजी प्रस्तावना (प्रा० ने० उपाध्ये) पृष्ठ ३१
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