Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
२०
नौवें अनिवृत्तिबादर गुणस्थान में आयुकर्म का बंध नहीं होता अतः वहाँ तो यह दूसरा भंग ही होता है किन्तु मिध्यादृष्टि आदि अन्य गुणस्थानवर्ती जीवों के भी सर्वदा आयुकर्म का बंध नहीं होता, अतः वहाँ भी जब आयुकर्म का बंध नहीं होता है तब दूसरा भंग बन जाता है । इस भंग का काल जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट छह माह और अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि का त्रिभाग अधिक तेतीस सागर है।
तीसरा भंग सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानवर्ती जीव को ही होता है । क्योंकि इनके आयु और मोहनीय कर्म के बिना शेष छह कर्मों का ही बंध होता है । इसका काल जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त प्रमाण है ।
यह तीनों भंग बंधस्थानों की प्रधानता से बनते हैं । अतः इनका जघन्य और उत्कृष्ट काल पूर्व में बताये बंधस्थानों के काल के अनुरूप बतलाया है ।
एक प्रकार के अर्थात् एक वेदनीय कर्म का बंध होने पर तीन विकल्प होते हैं- 'एगविहे तिविगप्पो' | जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
वेदनीय कर्म का बंध ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें - उपशान्तमोह, क्षीणमोह और सयोगिकेवली, इन तीन गुणस्थानों में होता है । किन्तु उपशान्तमोह गुणस्थान में सात का उदय और आठ की सत्ता, क्षीणमोह गुणस्थान में सात का उदय और सात की सत्ता सयोगिकेवली गुणस्थान में एक का बन्ध और चार का उदय, चार की सत्ता पाई जाती है । अतः एक वेदनीय कर्म का बंध होने की स्थिति में उदय और सत्ता की अपेक्षा तीन भंग इस प्रकार प्राप्त होते हैं
१. एक प्रकृतिक बंध, सात प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता ।