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सप्ततिका प्रकरण
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मतों से उदयविकल्पों और प्रकृतिविकल्पों के भंगों का कथन करने के बाद अब उदयस्थानों के काल का निर्देश करते हैं।
दस आदिक जितने उदयस्थान और उनके भंग बतलाये हैं, उनका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है ।"
चार प्रकृतिक उदयस्थान से लेकर दस प्रकृतिक उदयस्थान तक के प्रत्येक उदयस्थान में किसी एक वेद और किसी एक युगल का उदय होता है और वेद तथा युगल का एक मुहर्त के भीतर अवश्य ही परिवर्तन हो जाता है। इसी बात को पंचसग्रह की मूल टीका में भी बतलाया है
"ओवेन युगलेन वा अवश्यं मुहूर्ताबारसः परावर्तितव्यम् ।" अर्थात् एक मुहूर्त के भीतर किसी एक वेद और किसी एक युगल का अवश्य परिवर्तन होता है।
इससे निश्चित होता है कि इन चार प्रकृतिक आदि उदयस्थानों का और उनके भंगों का जो उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है, वह ठीक है । दो और एक प्रकृतिक उदयस्थान भी अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक पाये जाते हैं। अत: उनका भी उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त ही है ।
इन सब उदयस्थानों का जघन्यकाल एक समय इस प्रकार समझना चाहिये कि जब कोई जीव किसी विवक्षित उदयस्थान में या उसके किसी एक विवक्षित भंग में एक समय तक रहकर दूसरे समय में मर कर या परिवर्तन कम से किसी अन्य गुणस्थान को प्राप्त होता है तब उसके गुणस्थान में भेद हो जाता है, बन्धस्थान भी बदल जाता है और गुणस्थान के अनुसार उसके उदयस्थान और उसके भंगों में भी अन्तर पड़ जाता है। अतः सब उदयस्थानों और उसके सब भंगों का जघन्यकाल एक समय प्राप्त होता है ।
१ इह दशावय उदयास्तभंगारच जवन्यत एकसामयिका उत्कर्षत आन्तमीहूर्तिकः । - सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १७०