Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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१५.
सप्ततिका प्रकरण
के मिथ्यादृष्टि जीव को होना है। यदि इस बंधस्थान का बंधक सासादन सम्यग्दृष्टि होता है तो उसके आदि के पाँच संहननों में से किसी एक संहनन का तथा आदि के पांच संस्थानों में से किसी एक संस्थान का बंध होता है। क्योंकि हुण्डसंस्थान और सेबाल संहनन को सासादन सम्यग्दृष्टि जीव नहीं बांधता है
हुंडं असंपतं व सासणी म बंधइ । __ अर्थात्- सासादन मम्यग्दृष्टि जीव हुंडसंस्थान और असंशाप्तसंहनन को नहीं बाँधता है। ___ इस उनतीस प्रकृतिक धस्थान में सामान्य से छह संस्थानों में से किसी एक संस्थान का, छह संहननी में से किसी एक संहनन का, प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगांत में से किसी एक विहायोगति का, स्थिर और अस्थिर में से किसी एक का, शुभ और अशुभ में से किसी एक का, सुभग और दुर्भग में से किसी एक का, सुस्वर और दुःस्वर में से किसी एक का, आदेय और अनादेय में से किसी एक का, यश:कोति और अयश:कीति में से किसी एक का बंध होता है। अत: इन सब संख्याओं को गुणित कर देने पर--६x६४२४२४२४२x२x२ X२८४६०५ भंग प्राप्त होते हैं।
इस स्थान का बंधक सासादन सम्यग्दृष्टि भी होता है, किन्तु उसके पाँच संहनन और पाँच संस्थान का बंध होता है, इसलिये उसके ५४५४२x२x२x२x२४२४२-३२०० भंग प्राप्त होते हैं । किन्तु इनका अन्तर्भाव पूर्वोक्त भंगों में ही हो जाने से इन्हें अलग से नहीं गिनाया है।
उक्त उनतीस प्रकृतिक बंधस्थान में एक उद्योत प्रकृति को मिला देने पर तीस प्रकृतिक बंधस्थान होता है। जिस प्रकार उनतीस प्रकतिक बंधस्थान में मिथ्यादष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा