________________
पष्ठ कर्मप्रम्ब
१८६
एगेगमेगतीसे एगे एगृदय अटू संतम्मि। उबरयबंधे वस वस बेयगसंतम्मि ठाणाणि ॥३२॥
शम्बार्ष-एगैन-एक, एक, एगतीसे--- इकतीस प्रकृतिक संघस्थान में, एगे-एक के बंधस्थान में, एगुदय-एक उदयस्पान, भट्ट संतम्मि-आठ सत्तास्थान, अबरब-बैष के अभाव में, प्रस रस-दस-दस, वेयग--उदय में, संतम्मि-सत्ता में, ठाणाणि-- स्थान ।
वोतों गापा- लेईस, पच्चीस और छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थानों में नौ-नौ उदयस्थान और पांच-पांच सत्तास्थान होते हैं । अट्ठाईस के बंधस्थान में आठ उदयस्थान और चार सत्तास्थान होते हैं । उनतीस एवं तीस प्रकृतिक बंधस्थानों में नौ उदयस्थान तथा सत्तास्थान होते हैं ।
इकतीस प्रकृतिक बंधस्थान में एक उदयस्थान व एक सत्तास्थान होता है । एक प्रकृतिक बंधस्थान में एक उदयस्थान और आठ सत्तास्थान होते हैं। बंध के अभाव में उदय और सत्ता के दस-दस स्थान जानना चाहिए।
१ तुलना कीजिये
नव पंचीदयसत्ता तेवीसे पण्णवीसव्वीसे । अट्ठ चउरटुवीसे नक्सन्तिगतीसतीसे य॥ एस्केप इगतीसे एषके एक्कुदय अटु संतसा । उपरय बंधे दस दस नामोदयसंतठागाणि ।।
-यह सप्ततिका, गा० १,१०० णवपेचोदयसत्ता तेवीसे, पाणुवीस छन्वीसे । अट्ठ चदुरबीसे गवसत्तुगुतीसतीसम्मि ।। एगेगं इगितीसे एगे एगुदय मठ्ठ सत्ताणि । उपरदबंधे दस दस 'उवयंसा होति णियमेणं ॥
—गो कर्मकार, गा. ७४०,५४१