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पक्ष कर्म ग्रन्थ __ पहले गाथा में वेदनीय कर्म के विकल्पों का निर्देश किया है। पहले मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर छठे प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक छह गुणस्थानों में 'चउ छस्सु'–चार भङ्ग होते हैं। क्योंकि बंध और उदय की अपेक्षा साता और असातावेदनीय, ये दोनों प्रकृतियाँ प्रतिपक्षी हैं। अर्थात् दोनों में से एक काल में किसी एक का बंध और किसी एक का ही उदय होता है किन्तु दोनों की एक साथ सत्ता पाये जाने में कोई विरोध नहीं है तथा असाता वेदनीय का बंध आदि के छह गुणस्थानों में ही होता है, आगे नहीं। इसलिये प्रारंभ के छह गुणस्थानों में बदनीय कर्म के निम्नलिखित चार भंग प्राप्त होते हैं
१. असाता का बंध असाता का उदय और साता-असाता की सत्ता ।
२. असाता का बंध, साता का उदय और साता-असाता की सत्ता ।
३. साता का बंध, असाता का उदय और साता-असाता की सत्ता ।
४. साता का बंध, साता का उदय और साता-असाता की सत्ता ।
'दोण्णि सत्तसु"- सातवें गुणस्थान से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक सात गुणस्थानों में दो भङ्ग होते हैं। क्योंकि छठे गुणस्थान में असातावेदनीय का बंधविच्छेद हो जाने से सातवें से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक सिर्फ सातावेदनीय का बंध होता है, किन्तु उदय और सत्ता दोनों की पाई जाती है, जिससे इन सात गुणस्थानों में–१. साता का बंध, साता का उदय और साता-असाता की सत्ता तथा २. साता का बंध, असाता का उदय और साता-असाता की सत्ता, यह दो भङ्ग प्राप्त होते हैं।
इस प्रकार से तेरहवें गुणस्थान तक वेदनीय कर्म के बंधादि