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सप्ततिका प्रकरण
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में ४४, अप्रमत्तसंयत में ४४ और अपूर्वकरण में २० उदयस्थान पद हैं। इनका कुल जोड़ ४४+४४ + २० = १०८ होता है। इन्हें यहाँ संभव ७ उपयोगों से गुणित करने पर ७५६ हुए। इस प्रकार पहले से लेकर आठवे गुणस्थान तक के सब उदयस्थान पदों का जोड़ ६६० + ६७२ + ७५६ = २००८ हुआ । इन्हें भंगों की अपेक्षा २४ से गुणित कर देने पर आठ गुणस्थानों के कुल पदवन्दों का प्रमाण २०८८x२४ = ५०११२ होता है । अनन्तर दो प्रकृतिक उदयस्थान के पदवृन्द २४ और एक प्रकृतिक उदयस्थान के पद ५, इनका जोड़ २६ हुआ । सो इन २६ को यहाँ संभव ७ उपयोगों के दुक्ति करके १२०३ और प्राप्त हुए। जिन्हें पूर्वोक्त ५०११२ पदवृन्दों में मिला देने पर कुल पदवृन्दों का प्रमाण ५०३१५ होता है कहा भी है
पश्नासं च सहस्सा तिम्ति सथा चेव पन्नारा
अर्थात् - मोहनीय के पदवृन्दों को यहाँ संभव उपयोगों से गुणित करने पर उनका कुल प्रमाण पचास हजार तीनसौ पन्द्रह ५०३१५ होता है।
उक्त पदवृन्दों की संख्या मिश्र गुणस्थान में पांच उपयोग मानने की अपेक्षा जानना चाहिये। लेकिन जब मतान्तर से पांच की बजाय ६ उपयोग स्वीकार किये जाते हैं तब इन पदवृन्दों में एक अधिक उपयोग के पदवृन्द १३२४२४ = ७६८ भंग और बढ़ जाते हैं और कुल पदवृन्दों की संख्या ५०३१५ की बजाय ५१०८३ हो जाती है ।
उपयोगों की अपेक्षा पदवृन्दों का विवरण इस प्रकार जानना चाहिये
१ पंचसंग्रह सप्ततिका ग्रा० ११५ ।
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