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षष्ठ कर्मग्रन्थ
३३७ सब उदयस्थान आहारकसयत' और वैक्रियसंयत जीवों के जानना चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि ३० प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ संयतों के भी होता है । इनमें से वैक्रियसंयत और आहारकसंयतों के अलग-अलग २५ और २७ प्रकृतिक उदयस्थानों में से प्रत्येक के एक-एक तथा २८ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानों के दो-दो और ३० प्रकृतिक उदयस्थान का एक-एक, इस प्रकार कुल १४ भंग होते हैं तथा ३० प्रकृतिक उदयस्थान स्वभावस्थ जीवों के भी होता है सो इसके १४४ भंग और होते हैं, इस प्रकार प्रमत्तसंयत गुणस्थान के सब उदयस्थानों के कुल भंग १५८ होते हैं। __ यहाँ सत्तास्थान यार होते हैं-६३, १२, ८६ और ८८ प्रकृतिक ।
इस प्रकार प्रमत्तसंयत गुणस्थान में बंध, उदय और सत्तास्थानों का निर्देश करने के बाद अब इनके संवेध का विचार करते हैं
२८ प्रकृतियों का बंध करने वाले पूर्वोक्त पांचों उदयस्थानों में से प्रत्येक में ९२ और ८८ प्रकृतिक, ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं। उसमें भी आहारकसंगत के ६२ प्रकृतिक सत्तास्थान ही होता है, क्योंकि आहारकचतुष्क की सत्ता के बिना आहारक समुद्घात की उत्पत्ति नहीं हो सकती है किन्तु वैक्रियसंयत के ६२ और ८८ प्रकृत्तियों की सता संभव है। जिस प्रमत्तसंयत के तीर्थकर प्रकृति की सत्ता है वह २८ प्रकृतियों का बंध नहीं करता है । अतः यहाँ १३ और ८९ प्रकृतियों की सत्ता नहीं होती है तथा २६ प्रकृतियों का बंध करने वाले प्रमत्तसंयत के पाँचों उदयस्थान संभव हैं और इनमें से प्रत्येक में ६३ और ८६ प्रकृतिक, ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं । विशेष इतना है कि आहारक के ६३ की और वैक्रियसंयत के दोनों की सत्ता होती है।
इस प्रकार प्रमत्तसंयत के सब उदयस्थानों में पृथक-पृथक चारचार ससास्थान प्राप्त होते हैं, जिनका कुल प्रमाण २० होता है।