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पारिभाषिक शब्द-कोष
उन्मार्ग देशमा-संसार के कारणों और कार्यों का मोक के कारणों के रूप में
उपदेश देना; धर्म-विपरीत शिक्षा ! उपकरण.म्पेनिम आभ्यन्सर निवृत्ति की विषम-ग्रहण की शक्ति को अथवा जो
मिति का उपकार करती है, उसे उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहते हैं । परवात-शानियों और ज्ञान के साधनों का नाश कर देना । सपनात नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीम अपने शरीर के अवयवों जैसे
प्रतिजिल्ला, चोर दम्स आदि से बलेश पाता है। यह उपघात नामकर्म
कहलाता है। स्पपात मम्म-उत्पत्तिस्थान में स्थित बैंक्रिय पुद्गलों को पहले-पहल शरीर
रूप में परिणत करना उपपात जन्म कहा जाता है। उपभोगातराय कर्म-उपभोग की सामग्री होते हुए भी जीव जिस कर्म के
उदय से उस सामग्री का उपभोग न कर सके। उपयोग-जीव का बोष रूप व्यापार अथवा जीव का जो भाव वस्तु के ग्रहण
करने के लिए प्रवृत्त होता है, जिसके द्वारा वस्तु का सामान्य व विशेष स्वरूप जाना जाता है; अथवा आत्मा के चतन्यानुविधायी परिणार को
उपयोग कहते हैं। उपयोग भावेमिय-सम्धि रूप भावेन्द्रिय के अनुसार आत्मा की विषय -महण में
होने वाली प्रवृति । गपरसषकाल-पर-भव सम्बन्धी आयुबन्ध से उसरकार की अवस्था। सवरेनु-आठ मण-लहिणका का एक वरेण होता है। राज्यस्पर्धा नामकर्म-जिस कर्म के चपय से जीव का शरीर आग जैसा उष्ण हो । अपशम-बारमा में कर्म की निन पक्ति का कारणवश प्रगट न होना अथवा
प्रदेश और विपाक दोनों प्रकार के कर्मोदय का एक जाना जपपाम है। उपासमम-कर्म की जिस अवस्था में उदय अथवा जदीरणा संभव नहीं होती है। उपशमणि-जिस श्रेणी में मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियों का उपशम किया
जाता है। उपशाम्तकवाय धीतराग छदमस्थ गुगल्यान-जन जीवों के स्वरूप विशेष को
काहसे हैं जिनके कषाय उपशान्त हुए हैं, राग का मी सर्वथा उदय नहीं
है और छदम (आवरण भूत घातिकम) लगे हुए हैं 1 उपशान्तारा-औपशभिक सम्यक्त्व के काम को उपशाला कहा जाता है ।