Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 539
________________ ५० पारिभाषिक शब्द-कोर जाता है उनकी उसी रूप में विचारणा, गवेषणा करना मार्गणा कहलाता है। मारणान्तिक समुद्यात-मरण के पहले उस निमित्त जो समुद्घात होता है, उसे मारणान्तिक समुद्घात कहते हैं । मिग्यात्प-पदार्थों का अयथार्थ श्रद्वान | मिश्यावृष्टि गुणस्थान-मिथ्यात्व मोहनीय के उदय से जीव की दृष्टि (श्रद्धा, प्रतिपनि) मिथ्या (विपरीत) हो जाना मिथ्यादृष्टि है और मिथ्यास्टि जीव के स्वरूप विशेष को मिथ्यादृष्टि गुणस्थान कहते हैं । मिच्यास्व मोहनीय-जिसके उदय से जीव को तस्यों के यथार्थ स्वरूप की रचि न हो । मिथ्यात्य के अशुद्ध दलिकों को मिथ्यात्व मोहनीय कहते हैं । मिथ्यात्व बत-मिथ्याइष्टि जीवों के श्रुत को मिथ्यात्व श्रुत कहा जाता है । मित्र गुणस्थान-मिथ्यात्व के अर्ध शुद्ध पुद्गलों का उदय होने से जब जीव की दृष्टि कुछ सम्यक (शुद्ध ) और कुछ मिथ्या (अशुद्ध) अर्थात् वित्र हो जाती है तब वह जीव मिश्नदृष्टि कहलाता है और उसके स्वरूप विशेष को मिश्र गुणस्थान कहते है। इसका दूसरा नाम सम्यग्मिथ्याष्टि गुणस्थान भी है। मिष मनोयोग -- किसी अंश में यथार्थ और विसी अंश में अयथार्थ ऐसा चिन्तन जिस मनोयोग के द्वारा हो उसे मिश्र मनोयोग कहते हैं। मिम मोहनीय-जिस कर्म के उदय से जीव को यथार्थ की रुचि या अरुचि न होकर दोलायमान स्थिति रहे । मिथ्यात्व के अर्धशुद्ध दलिकों को भी मिश्र मोहनीय कहा जाता है । मिम सम्यकस्म-सम्यग्मिथ्यात्व मोहनीयकम के उदय से तत्व और अतत्त्व इन दोनों की रुचि रूप लेने वाला मिल परिणाम । मुक्त जीव-संपूर्ण कर्मों का क्षय करके जो अपने ज्ञान, दर्शन आदि माव प्राणों से युक्त होकर आत्मस्वरूप में अवस्थित हैं, वे मुक्त जीव कहलाते हैं। मुहत--दो घटिका या ४८ मिनट का समय । मूल प्रकृति-कर्मों के मुख्य भेदों को मूल प्रकृति कहते हैं ।

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