Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 538
________________ परिशिष्ठ-२ अग्रहणयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा के स्कन्धों से एक प्रदेश अधिक स्कन्धों की मनोद्रव्ययोग्य जनन्यवर्गणा होती है। मनोयोग---जीव का वह व्यापार जो औदारिक, वैक्रिय या आहारक शरीर के द्वारा ग्रहण किये हुए मानप्राधान्य वर्गणा को सहायता होता है। अथवा काययोग के द्वारा मनप्रायोग्य वर्गणाओं को रहण करके मनोयोग से मनरूप परिणत हुए वस्तु विचारात्मक द्वधप को मन कहते हैं और उस मन के सहचारी कारण भूत योग को मनोयोग कहते है । अथवा जिस योग का विषय मन है अथवा मनोवर्गणा से निष्पन्न हुए द्रव्य मन के अवलंबन से जीद का जो संकोच-विकोच होता है वह मनोयोग है। महाकमल-चौरासी लाग्नु महाकमलांग का एक महाकमल होता है । महाकमलांग-चौरासी लाख कमल के समय को एक महाकमलांग कहते हैं। महाकुमुह-चौरासी लाल महा मृदांग का एक महाकु मृद होता है । महाकमुदांग- चौरासी लाख कुमुद का एक महाकामदांग होता है। महालता--चौरससी लाख महालतांग के समय को एक महालता कहते हैं। महालतांग-चौरासी लाख लसा का एक महालतांग कहलाता है । महाशाखाका पल्य - महा साक्षीभूत सरसों के दानों काश भर जाने वाले पल्प को महाशलाका पल्य कहते हैं। मान-निस दोष से दूसरे के प्रति नमने की वृत्ति न हो; छोटे बड़े के प्रति उचित न अ भाव न रखा जाता हो; जाति, अल; तप आदि के अहंकार से दूरारे के प्रति तिरस्कार रूप वृत्ति हो, उसे मान कहते हैं। माया-आत्मा का कुटिल भाव । दूसरे को ठगने के लिए जो कुटिलता या छल आदि किये जाते हैं, अपने हृदय के विचारों को विधाने की जो चेष्टा की जाती है, वह माया है | अथवा विचार और प्रवृत्ति में एकरूपता के अभाव को माया कहते हैं। मार्गनाश-संसार-निवृत्ति और मुक्ति प्राप्ति के मार्ग का अपलाप करना । मार्गणा- उन अवस्थाओं को कहते हैं जिनमें गति आदि अवस्थाओं को लेकर जीव में गुणस्थान, जीवस्थान आदि की मार्गणा-विचारणा-गवेषणा की जाती है । अथवा जिन अबस्थाओं-पर्यायो आदि से जीवों को देख

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