Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 542
________________ परिशिष्ट-२ विशेष में दोनों तरफ हड्डी का मकरबंध हो, तीसरी हटो का वेठन भी हो, लेकिन तीनों को भेदने वाली हड्डी की कील न हो। रोचक सम्यक्त्व-जिनोक्त क्रियाओं में रुपि रखना। लघु स्पर्श नामकर्म--जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर झाक की हा जसा हल्का हो। लता-पारामा लास्य लतांग के समक्ष को एक सता कहत है । लत--चौरासी लाख पूर्व का एक लतांग होता है। लस्थि-ज्ञानावरणकर्म के अयोपशम विशेष को लब्धि कहते हैं। लम्बित्रस--वे जीष जिन्हें अस नामकर्म का उदय होता है और चलते-फिरते लमित्र पर्याप्त-वे जीव मिनको पर्याप्त नामकर्म का उदय हो और अपनी योग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करके मरते हैं, पहले नहीं। लब्धि प्रत्यय दैनिय शरीर-कियलचिअन्य जिरा बैंक्रिय शरीर से मनुष्य और तिमंचों द्वारा विषिष विक्रियायें की जाती हैं। सम्धि भावेत्रिय-- मतिज्ञानावरण कर्म के भयोपशम से चेतना शक्ति की योग्यता विशेष । लाध्यक्षर- रामद को सुनकर या रूप को देखकर अर्थ का अनुभवपूर्वक पर्या लोचन करना । लख्यपर्याप्स-वे जीव जो स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण किये बिना ही मर जाते हैं। लव-सात स्तोक का समय । लाभातराप कर्म -गिस कर्म के उदय से जीव को इष्ट वस्तु को प्राप्ति न हो सके। लोख-मरत और ऐरारत क्षेत्र के मनुष्यों के आठ केशागों की एक लीस होती है। लेण्या-जीव के ऐसे परिणाम जिनके द्वारा आस्मा कर्मों से लिप्त हो अथवा कपायोदय से अनुरंजित योग प्रवृत्ति । सोभ-वन आदि की तीन आकांक्षा या गृद्धता; बाह्य पदार्थों में 'अह मेरा है' इस कार को अनुराग बुद्धि, ममता आदि म परिणाम ।

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