Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 553
________________ ६४ पारिभाषिक शब्द कोष -जिस के उदय से जीव का स्वर श्रोता को प्रिय लगता सुस्वर नामकर्महै । सूक्ष्म नामकर्म - जिस क्रम के उदय से परस्पर व्याघात से रहित सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति हो। यह शरीर स्वयं न किसी से रुकता है और न अन्य किसी को रोकता है । -- सूक्ष्म अापस्योपम - सूक्ष्म उद्धार पत्य में से सौ-सौ वर्ष के बाद केशाय का एक-एक खंड निकालने पर जितने समय में वह पश्य खाली हो जाता है उतने समय को सूक्ष्म अापल्योपम कहते हैं । सूक्ष्म असा सागरोपम - दस कोटा कोटी सूक्ष्म अद्धापल्योपम का एक सूक्ष्म अद्धासागरोपम कहलाता है। सूक्ष्म उद्धार पस्योषम द्रव्य, क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यातगुणी सूक्ष्म अवगाहना वाले केशाय खंडों से पल्य को साहस भरकर प्रति समय उन केशा खंडों में से एक-एक खंड को निकालने पर जितने समय में वह पत्य खाली हो, उसने समय को सूक्ष्म उद्धार गल्योग कहते है । सूक्ष्म उद्धार सागरोपम-दस कोटाकोटी सूक्ष्म उद्धार पल्योपम का एक सूक्ष्म उद्धार सागरोषम होता है । लक्ष्मकाल पुद्गल परावर्त - जितने समय में एक जीव अपने मरण के द्वारा उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के समयों को क्रम रो ग कर लेता है । सूक्ष्मक्रिया निवृति शुषलध्यान- जिरा शुक्लध्यान में सर्वेज मगत्रान द्वारा योग निरोध के क्रम में अनन्त: सूक्ष्म काययोग के आश्रय से अन्य योगों को रोक दिया जाता है । सूक्ष्म क्षेत्र पत्योपत्र बादर क्षेत्र पल्य के बालाओं में से प्रत्येक के असंख्यात खंड करके पश्य को ठसाठस भर दो। वे खंड उस पल्य में आकाश के जितने प्रदेशों को स्पर्श करें और जिन प्रदेशों को स्पर्श न करें, उनसे प्रति समय एक-एक प्रदेश का अवहरण करते-करते जितने समय में स्पृष्ट और अस्पृष्ट सभी प्रदेशों का अवहरण किया जाता है, उतने समय को एक सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपभ कहते हैं । सूक्ष्म क्षेत्र पुगल परावर्त — कोई एक जीव संसार में भ्रमण करते हुए आकाण

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