Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 556
________________ I परिशिष्ट २ ६७ (ह) हाथ-दो क्तिस्ति के माप को हाथ कहते हैं । हारिद्रवर्ण नामकर्म -- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर हल्दी जैसा पोला हो । - हास्य मोहनीय- - जिस कर्म के उदय से कारणवश अथवा बिना कारण के हंसी आती है । हीयमान अवधिज्ञान - अपनी उत्पत्ति के समय अधिक विषय वाला होने पर मी परिणामों की अशुद्धि के कारण दिनोंदिन क्रमश: अल्प, बल्पतर, अस्पतम विषयक होने वाला अवधिज्ञान | इंडसंस्थान नामकर्म — जिस कर्म के उदय से शरीर के सभी अवयव बेडौल हों, प्रणयुक्त हह-चौरासी लाख हुहु-अंग का एक हुहु होता है । -अंग - चौरासी लाख अबव की संख्या | हेतुवायोपवेशको संज्ञा- अपने शरीर के पालन के लिए इष्ट में प्रवृत्ति और अनिष्ट वस्तु से निवृत्ति के लिए उपयोगी सिर्फ वर्तमानकालिक ज्ञान जिससे होता है, वह हेतुवादोपदेशिकी संज्ञा है । हेतुविपाकी - पुद्गलादि रूप हेतु के आश्रय से जिस प्रकृति का विपाक--- फलानुभव होता है ।

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