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परिशिष्ट-२
श्वासोच्छ्वास काल — रोगरहित निश्चिन्त तरुण पुरुष के एक बार श्वास लेने और त्यागने का काल ।
श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति-दवासोच्छ्वासयोग्य पुद्गलों को ग्रहण कर श्वासोच्छुवासरूप परिणत करके उनका सार ग्रहण करके उन्हें वापस छोड़ने की जीव की शक्ति को पूर्णता ।
वर्गेणा के
श्वासोच्छ्वासयोग्य उत्कृष्ट वर्गणा श्वासोच्छ्वासयोग्य जघन्य ऊपर एक-एक प्रदेश बढ़ते-बढ़ते जघन्य वर्गणा के स्कन्ध के प्रदेशों के अनन्त माग अधिक प्रदेश वाले स्कन्धों की श्वासोच्छ्वासयोग्य उत्कृष्ट
गंणा होती है | श्वासोच्छ्वासयोग्य कस्य
५.६
गाभावाद की उत्कृष्ट अग्रहणयोग्य वर्गणा के स्कन्धों से एक प्रदेश अधिक स्कन्धों की वर्गणा वासोच्छ्वासयोग्य जघन्य वर्गणा होती है ।
( स )
संक्लिश्याम सूक्ष्म पराय संयम - उपशमणि से गिरने वाले जीवों के दसवें गुणस्थान की प्राप्ति के रामय होने वाला संयम ।
संक्रमण – एक कर्म रूप में स्थित प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश का अभ्य सजातीय कर्म रूप में बदल जाना अथवा वीर्यविशेष से कर्म का अपनी ही दूसरी सजातीय कर्म प्रकृति स्वरूप को प्राप्त कर लेना ।
संख्या - भेदों की गणना को संख्या कहा जाता है ।
संख्य अनुयोगद्वार -- जिस अनुयोग द्वार में विवक्षित धर्म वाले जीवों की संख्या का विवेचन हो ।
संख्यातादर्शणा - संख्यात प्रदेशी स्वान्धों की संख्याताणुवर्गणा होती है । संघनिया साधु साध्वी, धावक श्राविका रूप संघ की निन्दा गर्दा करने को संघनिन्दा कहते हैं ।
संघात नामकर्म - जिस कर्म के उदय से प्रथम ग्रहण किये हुए शरीर पुद्गलों पर नवीन ग्रहण किये जा रहे शरोरयोग्य मुद्गल व्यवस्थित रूप से स्थापित किये जाते हैं ।
संघात त - गति आदि चौदह मार्गणाओं में से किसी एक मागंगा का एकदेश
ज्ञान ।