Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 547
________________ पारिभाषिक शब्द-कोष शीतस्पर्श नामकर्म -जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर बर्फ जैसा ठंडा हो । शीर्षप्रहेलिका-चौरासी खास पीर्षप्रहेलिकांगनी एक शीर्षप्रहेलिका होती है। जोगदेलका-- रास नाक, का एक शिकांग कहलाता है । शुक्ललेश्या-शंख के समान श्वेतवर्ण के लेश्या जातीय पुगलों के सम्बन्ध से आत्मा के ऐसे परिणामी का होना कि जिनसे कषाय उपशान्त रहती है, वीतराग-नाब सम्पादन करने की अनुकूलता आ जाती है। शुभ नामकर्म---जिस कर्म के उपय से जीव के शरीर में नामि से ऊपर के अब यव शुभ हो। शुभविहायोगति नामकर्म--जिस कर्म के उदय से जीव को चाल हाथी, बैल की चाल की तरह शुम हो। व तज्ञान- जो ज्ञान श्रतानुसारी है जिसमें शब्द और अर्घ का सम्बन्ध मासित होता है, जो मतिज्ञान के बाद होता है तथा शब्द और अर्थ को पर्यासोचना के अनुसरणपूर्वक इन्द्रिय व मन के निगित से होने वाला है। उसे अ तज्ञान कहते हैं। अतअज्ञाम---मिथ्यात्व के उदय से सहचरित अनजान । व तमानावरगफर्म--- तज्ञान का आवरण करने वाला कर्म । भोणि-सात राजू लंबी आकाश के एक-एक प्रदेश की पंक्ति । योगिगत सासावनसम्यष्टि -वह जीव जो उपदामनगि से गिरकर सासादन गुणस्थान को प्राप्त होता है । शैलेशी अवस्था—मेरु पर्वत के समान निश्चल अथवा सर्व संवर रूप योग निरोध की अवस्था । शैलेशीकरण... वेदनीय, नाम और गोत्र इन तीन कर्मों की असंख्यात गुणणि से और आयुकर्म की यथास्थिति से निर्जरा करना । शोकमोहनीय-जिस कर्म के उदय से कारणवश या बिना कारण ही मोक होता है। लक्षणम्सक्षिणका--आठ उत्पलक्ष्णश्तक्षिणका की एक श्लक्ष्णश्लक्षिणका होती है । स्वासोचवास---शरीर से बाहर की वायु को नाक के द्वारा अन्दर खींचना और अन्दर की हवा को बाहर निकालना श्वासोच्छ्वास कहलाता है।

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