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मध्यम असंख्यातासंख्यात-जघन्य और उत्कृष्ट असंख्यातसंख्यात के मध्य
की राशि । मध्यम परीतासंख्यात-अपन्य परीतासंख्यात को एक संख्या से युक्त करने
पर जहां तक उत्कृष्ट परीतासंख्याप्त न हो, यहाँ तक की संख्या । मध्यम परीतानन्त-जवन्य और उत्कृष्ट परीतानन्त के मध्य की संख्या । मध्यम पुक्तानन्त-जघन्य और उत्कृष्ट युक्तानन्त के बीच की संख्या । मध्यम युक्तालयात-जघन्य और उत्कृष्ट युक्तासंख्यात के बीच की संख्या । मध्यम संस्थात-दो से ऊपर (तीन से लेकर) और उत्कृष्ट संख्यात से एक
कम तक की संख्या । मग-विचार करने का साधन | मनःपर्याप जान-इन्द्रिम और मन की अपेक्षा न रखते हुए, मर्यादा के लिए
हुए संशी जीवों के गनोगत भावों को जानना मन:पर्याम शान है अथवामन के चिन्सनीय परिणामों को जिस ज्ञान से प्रत्यक्ष किया जाता है,
उसे मनःपर्याय ज्ञान करते हैं । मनःपर्याय ज्ञानापरण-मनःपर्यायज्ञान का आचरण करने वाला कर्म । मनःपर्वाक्ति-जिस शक्ति से जीव मन के योग्य मनोवर्गणा के पुद्गलों को
ब्रहण करके मन रूप परिणमन करे और उसकी शक्ति विशेष से उन
पुद्गलों को वापस छोड़े, उसकी पूर्णता को मनःपर्याप्ति कहते हैं। मसुम्प-जो मन के द्वारा नित्य ही हेग-उपादेय, तत्त्व-अतत्त्व, आप्त-अनाप्त,
धर्म-अधर्म आदि का विचार करते हैं, कम करने में निपुण है। उत्कृष्ट मन के धारक है, विवेकशील होने से न्याय-नीतिपूर्वक आचरण करने
वाले हैं, उन्हें मनुष्य कहते हैं ! ममुष्पगति नामकर्म-जिस कर्म के उपथ से जीव को वह अवस्था प्राप्त हो
कि जिसमें 'यह मनुष्य है' ऐसा कहा जाये । मनुष्यागु-निराके उदय से मनुष्यगति में जन्म हो । मनोव्य योग्य उत्कृष्ट वर्गणा-मनोद्रव्य योग्य जघन्य वर्गणा के जार एक
एक प्रदेश बढ़ते-बढ़ते अघाम वर्गणा के रकाघ के प्रदेशों के अनन्त भाग
अधिन. प्रदेश वाले स्वन्धों की मनोद्रव्य योग्य उत्कृष्ट वर्गणा होती है। मनोरण्य योग्य जघन्य वर्गणा-स्वासोच्छवास योग्य उत्कृष्ट वगंणा के बाद नौ