Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

Previous | Next

Page 517
________________ पारिभाषिक शब्द-कोष कृतकरण सम्यक्श्व मोहनीय के अन्तिम स्थिति खण्ड को खपाने वाले क्षपक को कहते हैं । 싫 कृष्णलेश्मा – काजल के समान कृष्ण वर्ण के लेश्या जातीय मुगलों के सम्बन्ध से आत्मा में ऐसे परिणामों का होना, जिससे हिंसा आदि पाँचों आस्रवों में प्रवृत्ति हो - मन, वचन, काय का संयम न रहना, गुण-दोष की परीक्षा किये बिना ही कार्य करने की आदत बन जाना, क्रूरता आ जाना आदि । कृष्णवर्ण नामकर्म --- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर कोयले जैसा काला हो । केवलज्ञान -- ज्ञानावरण कर्म का निःशेष रूप से क्षय हो जाने पर जिसके द्वारा भूत, वर्तमान और भावी कालिक सब द्रथ्य और पर्यायें जानी जाती हैं. उसे केवलज्ञान कहते हैं। किसी को सहायता के बिना सम्पूर्ण जेय पदार्थों का विषय करने का ज्ञान केवलज्ञान है । केवलावरण कर्म – केवलज्ञान का आवरण करने वाला कर्म । केवलर्शन- सम्पूर्ण द्रव्यों में विद्यमान सामान्य धर्म का प्रतिभासु । केवलदर्शनावरण कर्म - केवलदर्शन का आवरण करने वाला कर्म । केवली समुद्रात -- वेदनीय आदि तीन अघाती कमों को स्थिति आयुकर्म के बराबर करने के लिए केबली-जिन द्वारा किया जाने वाला समुधात केशा--- आठ रथरेणुका देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्य का एक पान होता है । उनके आठ केशाओं का हरिवर्ष और रम्यकवर्ष के मनुष्य का एक केशाय होता है तथा उनके माठ केशाओं का हेमवत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्य का एक केशाय होता है, उनके आठ के शात्रों का पूर्वापर विदेह के मनुष्य का एक केशाम होता है और उनके आठ केशाग्रों का मरत, ऐरावत क्षेत्र के मनुष्य का एक केशाग्र होता है । कोड़ाकोटी - एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने पर प्राप्त राशि । क्रोध - समभाव को भूलकर आक्रोश में मर जाना, दूसरों पर रोष करना क्रोध है। अंतरंग में परम उपशम रूप अनन्त गुण वाली आत्मा में क्षोभ तथा बाह्य विषयों में अन्य पदार्थों के सम्बन्ध से क्रूरता, आवेश रूप विचार उत्पन्न होने को क्रोध कहते है । अथवा अपना और पर का उपघात या अनुपकार आदि करने वाला क्रूर परिणाम क्रोष कहलाता है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573