Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

Previous | Next

Page 523
________________ पारिभाषिक शम्द-कोष १. जिम निन्दा-जिन भगवान, निरावरण केवलशानी की निन्दा, गहीं करना, असत्य दोषों का आरोपण करना । जीव-जो द्रव्य प्राण (इन्द्रिय, बल, आयु, श्वासोच्छवास) और माय प्राण (ज्ञान, दर्शन आदि स्वाभाषिक गुण) से जीता था, जीता है और जीयेगा, उसे जीव कहते हैं। जीवमिपाको प्रकृति-जो प्रकृति जीव में ही उसके जानादि स्वरूप का घात करने रूप फल देती है। नौवसमास-जिन समान पर भाप धर्मों के द्वारा सभी का संग्रह किया जाता है, उन्हें जीवसमास या जीवस्थान कहते हैं । बुगप्सा मोहमीपकर्म—जिस कर्म के उदय से सकारण या बिना कारण के ही वीभत्स-घृणाजनक पदार्थों को देखकर घृणा उत्पन्न होती है। शाम-जिसके द्वारा जीव त्रिकाल विषयक भूत, वर्तमान और मविष्य सम्बन्धी समस्त पूण्य और उनके गुण और पर्यायों को आने । अथवा सामान्य विशेषात्मक वस्तु में से उसके विशेष अंश को जानने वाले आत्मा के व्यापार को शान कहते हैं। शानावरण कर्म--शारमा के ज्ञान गुण को आच्छादित करने पाला कर्म । मानोपयोग-प्रत्येक पदार्थ को उन-उनकी विशेषताओं की मुल्पसा से विकल्प करके पृषक् पृथक् ग्रहण करना । वा विस्तारस नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव का बारीर-रस सौंठ या काली मिर्ष जैसा घरपरा हो। तिर्यच--जो मन, वचन, काय की कुटिलता को प्राप्त हैं, जिनके आहार आदि संशा सुम्यक्त है, निकृष्ट अज्ञानी हैं, तिरछ गमन करते हैं और जिनमें मात्यधिक पाप की बहुलता पाई जाती है, उन्हें तिथंच कहते हैं। बिनको तिवगति नामकर्म का उदय हो, उन्हें तिथंच कहते हैं । कति मामकर्म-जिस कर्म के उवय से होने वाली पर्याय द्वारा जीव लियच कहलाता है। तिचायु-जिसके उदय से तिबंधगति का जीवन व्यतीत करना पड़ता है। होकर नामक-जिस कर्म के उदय से तीर्थकर पद की प्राप्ति होती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573